उत्तराखण्ड देश का वह राज्य जहां हर त्यौहार एक विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है। कोई राष्ट्रीय पर्व हो या यहां के स्थानीय त्यौहार सभी त्यौहार पूरे विधि-विधान के साथ मनाये जाते हैं। वहीं हम बात करें होली के त्यौहार की तो पूरे देश में होली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है, और इस दिन बुजुर्ग हों या बच्चे हर कोई रंग में सराबोर होकर इस त्यौहार को मनाता है।
वहीं बात करें उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र की तो यहां होली का अपना विशेष महत्व है, यहां होली बैठकी होली व खड़ी होली के रूप में मनायी जाती है। कुमाऊं मणडल में रंग वाली होली के करीब ढाई महीने पहले से ही होली की शुरूआत हो जाती है, होली की यह अनोखी परंपरा कुमाऊँ में सदियों से चली आ रही है। कुमाऊँ में होली का इतिहास सदियों पुराना रहा है। करीब डेढ़ सौ साल पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमाऊँ में होली गीतों की शुरूआत की थी, और तब से लेकर आज तक कुमाऊँ में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है।
नैनीताल में कुमाऊं की इस होली का आगाज हो चुका है, जिसमे नैनीताल के युवाओं,बच्चों और बुजुर्गों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, नैनीताल में ढाई महीने पहले शुरू हो चुकी कुमाऊँनी होली की खास बात ये है कि यहाँ धर्म की कोई पाबंदी नहीं होती,जिस तरह हिन्दू कुमाऊँनी होली में अपनी भागीदारी देते हैं ठीक उसी तरह अन्य धर्मों के लोग भी एकता की मिसाल देते हुए कुमाऊँनी होली में हिस्सा भी लेते हैं और कुमाऊँनी भाषा में होली गाते भी हैं।
इस अनूठी परंपरा में सभी लोग होली तीन चरणों में मनाते हैं, बैठकी होली के माध्यम से पहले चरण में विरह की होली गाई जाती है और बसंत पंचमी से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है, जैसे बसंत के प्रारंभ होने से खेतों में पीली सरसों लहराने लगती है और श्रृंगार रस घुलने लगता है। इसके बाद महाशिवरात्री से होली के टीके तक राधा-कृष्ण और छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलता है, अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है और रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है।पौष माह के पहले रविवार से चीड़ बंधन तक तकरीबन ढाई माह तक चलने वाली यह होली युवा पीढ़ी को बहुत भाती है, यहां का युवा वर्ग भी बढ-चढ़कर इस होली में शामिल होता है।