Home उत्तराखंड देवउठनी एकादशी आज; जानिए तुलसी पूजा, विधि और महत्व…

देवउठनी एकादशी आज; जानिए तुलसी पूजा, विधि और महत्व…

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आज देवउठनी एकादशी है. मान्यता है कि कार्तिक महीने की देवउठनी एकादशी को पूरे चार महीने तक सोने के बाद भगवान विष्णु जागते हैं. देवउठनी एकादशी पर ही भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह किया था. भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं और केवल तुलसी दल अर्पित करके श्रीहरि को प्रसन्न किया जा सकता है. जो लोग तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है.

राक्षस कन्या वृंदा को दिए एक आशीर्वाद के अनुसार, भगवान विष्णु ने वृंदा से विवाह करने के लिए शालिग्राम के अवतार में जन्म लिया. प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने शालिग्राम के अवतार में तुलसी से विवाह किया था. इसीलिए हर साल प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी पूजा की जाती है. आइए जानते हैं कि वृंदा नाम की राक्षस कन्या कैसे बनी तुलसी और कैसे हुआ विष्णु के साथ तुलसी का विवाह?

हिंदू धर्मग्रन्थों के अनुसार, वृंदा नाम की एक कन्या थी. वृंदा का विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया गया. वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थी और एक पतिव्रता स्त्री भी थी जिसके कारण उसका पति जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया.

यहां तक कि देवों के देव महादेव भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे. भगवान शिव समेत देवताओं ने जलंधर का नाश करने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने जलंधर का भेष धारण किया और पतिव्रता स्त्री वृंदा की पवित्रता नष्ट कर दी.

जब वृंदा की पवित्रता खत्म हो गई तो जालंधर की ताकत खत्म हो गई और भगवान शिव ने जालंधर को मार दिया. वृंदा को जब भगवान विष्णु की माया का पता चला तो वह क्रुद्ध हो गश्रीहरि की उपासना की सबसे अद्भुत एकादशी कार्तिक महीने की एकादशी होती है जब श्रीहरि जागते हैं. इस दिन को देवउठनी या देव प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं. माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की लंबी निद्रा के बाद जागते हैं. हिंदू परंपराओं के मुताबिक, इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम की शादी तुलसी से होती है. 8 नवंबर को यानी आज देवउठनी एकादशी मनाई जा रही है.ई और उसने भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने (शालिग्राम पत्थर) का श्राप दे दिया.

देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह की तरह भी पूजा जाता है. इस तिथि पर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के साथ ही तुलसी की भी विशेष पूजा की जाती है. जो लोग पूरी विधि से तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है. आइए जानते आज के दिन कैसे की जाती है तुलसी जी की पूजा.एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य को जल चढ़ाएं. जल के लोटे में में लाल फूल और चावल भी डालें. इस दौरान सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: ऊँ भास्कराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए.

सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और उन्हें ओढ़नी यानी चुनरी पहनाएं. सुहाग का पूरा सामान तुलसी को चढ़ाएं. अगले दिन तुलसी को चढ़ाई सारी चीजें किसी गरीब सुहागिन को दान करें.सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते ना तोड़ें. अमावस्या, चतुर्दशी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए.