Home अपना उत्तराखंड आज देवभूमि में मनाया जा रहा है हरेला त्योहार, जानें क्या है...

आज देवभूमि में मनाया जा रहा है हरेला त्योहार, जानें क्या है इसका महत्व…

1061
SHARE
श्रावण मास में पावन पर्व हरेला उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। आज से इस पर्व की शुरुआत हो गई है। मानव और प्रकृति के परस्पर प्रेम को दर्शाता यह पर्व हरियाली का प्रतीक है। सावन लगने से नौ दिन पहले बोई जाने वाली हरियाली को दसवें दिन काटा जाता है और इसी दिन इस पावन पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

‘जी रया जागि रया, यों दिन मास भेटनै रया…।’ यानी कि आप जीते-जागते रहें। हर दिन-महीनों से भेंट करते रहें…यह आशीर्वाद हरेले के दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य परिजनों को हरेला पूजते समय देते हैं। इस दौरान हरेले के तिनकों को सिर में रखने की परंपरा आज भी कायम है।

हरियाली के प्रतीक हरेला पर्व की तैयारी 10 दिन पहले ही शुरू होती है। एक टोकरी में मिट्टी डालकर और उसे मंदिर के पास रख सात अनाज बोते हैं। इसमें गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों व चने को शामिल किया जाता है। सुबह-शाम पूजा के समय इन्हें सींचा जाता है और नौंवे दिन गुड़ाई की जाती है। जिसके बाद दसवें दिन हरेला मनाया जाता है।

हरेला पर्व: जिलाधिकारी ने किया पौधरोपण 
हरेला पर्व और रिस्पना टू ऋषिपर्णा अभियान के तहत जिलाधिकारी सी. रविशंकर ने मंगलवार को पौधरोपण किया। उन्होंने पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ दौड़वाला और मोथरोवाला में पौधे लगाए। उसके बाद कलेक्ट्रेट परिसर के बगीचे में पौधरोपण किया।

इस दौरान उन्होंने अधिकारियों से पौधे बचाने का आह्वान भी किया। मौके पर अपर जिलाधिकारी प्रशासन रामजीशरण शर्मा, अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व बीर सिंह बुदियाल, सिटी मजिस्ट्रेट अभिषेक रोहेला, एसडीएम सदर कमलेश मेहता आदि मौजूद रहे।

एक पेड़ नहीं, पूरा जंगल पनपाओ
हरेला सहित अन्य मौकों पर रोपे जा रहे पौधों की जीवित रहने की दर को बढ़ाने के लिए अब एक साथ और एक ही तरह के क्षेत्र में अधिक से अधिक पौधों को रोपने की योजना बनाई गई है। इस प्रयोग के तहत इस बार हरेला पर्व पर अल्मोड़ा में कोसी नदी के जल संग्रहण क्षेत्र में करीब दो लाख पौधे रोपे जाएंगे। वन विभाग की कोशिश इस तरह के अभियान अन्य क्षेत्रों में शुरू करने की भी है।

2016 के बाद से कुमाऊं के सांस्कृतिक हरेला पर्व को प्रदेश में एक व्यापक स्तर के पौधरोपण अभियान का रूप दिया जा चुका है। लोगों ने भी इस पहल को हाथों-हाथ लिया और अब हरेला एक तरह से प्रदेश में सामाजिक स्तर पर व्यापक पौधारोपण अभियान का पर्याय बन गया है।

रोपे गए पौधों की मृत्यु दर अधिक
मुसीबत ये है कि व्यापक स्तर पर पौधारोपण होने के बावजूद प्रदेश को इसका फायदा बेहद कम मिल रहा है। कारण ये है कि रोपे गए पौधों की मृत्यु दर अधिक है। यह प्रदेश सरकार के लिए भी चिंता का सबब है और यही वजह है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी लोगों से लगाए गए पौधों की देखभाल का दायित्व स्वीकार करने की अपील कर रहे हैं। सीएम के मुताबिक कुल 6.50 लाख पौधे जन सहभागिता से हरेला पर्व पर रोपे जाएंगे।

कोई ठोस जानकारी नहीं
लोगों की ओर से रोपे जा रहे पौधों के जीवित रहने की दर को जानने के लिए अभी तक कोई अध्ययन भी नहीं किया गया है। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक कुल मिला कर यह तय है कि लोगों की ओर से रोपे जा रहे पौंधों का सरवाइवल रेट बहुत ही कम है।

पिछले साल लगाए थे डेढ़ लाख पौधे, 90 से अधिक मिला सरवाइवल रेट
कोसी नदी के जल संग्रहण क्षेत्र में पिछले साल ही वन विभाग ने डेढ़ लाख पौध रोपीं थी। इनका रोपण भी नदी को पुनर्जीवित करने के अभियान के तहत किया गया था। वन विभाग ने पाया कि इन पौधों का सरवाइवल रेट 90 प्रतिशत से अधिक रहा। यहीं से एक क्षेत्र में अधिक से अधिक पौधे लगाने की योजना ने जन्म लिया।

क्यों नहीं बचते पौधे
– पौधों का सही चयन का न होना, मसलन अधिक पानी की दरकार वाले पौधों को कम पानी वाले क्षेत्रों में लगा देना
– ट्री गार्ड आदि की व्यवस्था न करना, ऐसे में लगाए गए पौधे को जानवर नुकसान पहुंचा देते हैं
– रोपे गए पौधों की देखभाल न होना, समय पर पानी, मिट्टी आदि की जरूरत की अनदेखी