कोरोना संकट के दो साल बाद इस वर्ष अगस्त महीने में रैथल के ग्रामीण दयारा बुग्याल में पारंपरिक व ऐतिहासिक बटर फेस्टिवल यानि अढूंडी उत्सव का आयोजन करेंगे। 17 अगस्त को आयोजित होने वाले इस पारंपरिक उत्सव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे। इस बार बटर फेस्टिवल में आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर महोत्सव का आयोजन कर आजादी के जश्न पर दूध, मट्ठा व मक्खन की होली के साथ मनाया जाएगा। साथ ही समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में 15 अगस्त को इस बार तिरंगा फहराया जाएगा।
समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई पर 28 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में रैथल के ग्रामीणों द्वारा सदियों से भाद्रप्रद महीने की संक्रांति को दूध, मक्खन, मट्ठा की होली का आयोजन किया जाता है। प्रकृति का आभार जताने के लिए आयोजित किए जाने वाले इस दुनिया के अनोखे उत्सव को रैथल गांव की दयारा पर्यटन उत्सव समिति व ग्राम पंचायत बीते कई वर्षों से बड़े पैमाने पर दयारा बुग्याल में आयोजित कर रही है, जिससे देश विदेश के पर्यटक इस अनूठे उत्सव का हिस्सा बन सकें।
दो वर्षों से कोरेाना संकट के चलते बटर फेस्टिवल का आयोजन ग्रामीणों द्वारा अपने स्तर पर ही परंपराओं का निर्वहन करते हुए बेहद सूक्ष्म स्तर पर किया था। लेकिन इस बार दयारा पर्यटन उत्सव समिति 17 अगस्त को पारंपरिक रूप से दयारा बुग्याल में बटर फेस्टिवल का भव्य रूप से आयोजन कर रही है। इस वर्ष होने वाले आयोजन में दयारा बुग्याल में ग्रामीण देश- विदेश से आने वाले मेहमानों के साथ 17 अगस्त को दूध, मक्खन, मट्ठा की होली खेलेंगे।
अढूंडी उत्सव यानि दूध मक्खन मट्ठा की अनोखी होली
रैथल के ग्रामीण गर्मियों की दस्तक के साथ ही अपने मवेशियों के साथ दयारा बुग्याल समेत गोई चिलापड़ा में बनी अपनी छानियों में ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए पहुंच जाते हैं। उंचे बुग्यालों में उगने वाली औषधीय गुणों से भरपूर घास व अनुकूल वातावरण का असर दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर भी पढ़ता है। ऐसे में उंचाई वाले इलाकों में सितंबर महीने से होने वाली सर्दियों की दस्तक से पहले ही ग्रामीण वापस लौटने से पहले अपनी व अपने मवेशियों की रक्षा के लिए प्रकृति का आभार जताने के लिए इस अनूठे पर्व का आयोजन करते हैं। स्थानीय स्तर पर अढूंडी पर्व के नाम से जाना जाने वाले इस बटर फेस्टिवल में समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई पर ताजे मक्खन व छाछ से होली खेली जाती है।