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जम्मू कश्मीर में लगी पाबंदियों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला।

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जम्मू- कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने और दो पृथक केन्द्र-शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से लगाई गई पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि जम्मू कश्मीर सरकार एक सप्ताह के भीतर सभी प्रतिबंधात्मक आदेशों की समीक्षा करे। कोर्ट ने प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने के लिए कहा। साथ ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन से प्रतिबंध लगाने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने और उन्हें सार्वजनिक करने के लिए कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल उपकरण के तौर पर नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कश्मीर में बहुत हिंसा हुई है। हम सुरक्षा के मुद्दे के साथ मानवाधिकारों और स्वतंत्रता को संतुलित करने की पूरी कोशिश करेंगे। इंटरनेट पर एक समयसीमा तक ही रोक लगना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह कोई संदेह नहीं है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बोलने की स्वतंत्रता अनिवार्य तत्व है। इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत एक मौलिक अधिकार है।
अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति जताने वाले किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल अनिश्चित काल तक नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा जारी करते समय इसपर विचार करना चाहिए और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।

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