शारदीय नवरात्रि का आज शुक्रवार को छठा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की आराधना विधि विधान से करने की परंपरा है। माता कात्यायनी की पूजा करने से व्यक्ति सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त करता है, वह खुद किए गए प्रयासों से। देवी कात्यायनी को लाल रंग का पुष्प खासकर लाल गुलाब बहुत प्रिय है। पूजा के दौरान माता को लाल गुलाब अर्पित करें। पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करें और दुर्गा आरती करें।
कैसे देवी का नाम पड़ा कात्यायनी
माता पार्वती का सबसे ज्वलंत स्वरूप देवी कात्यायनी हैं। देवी कात्यायनी को योद्धाओं की देवी भी कहा जाता है। असुरों के आतंक और अत्याचार से देवताओं तथा ऋषियों की रक्षा के लिए माता पार्वती कात्यायन ऋषि के आश्रम में अपने ज्वलंत स्वरूप में प्रकट हुईं। कात्यायन ऋषि के आश्रम में प्रकट होने से उनका नाम कात्यायनी पड़ा। कात्यायन ऋषि ने उनको अपनी कन्या स्वीकार किया था।
मां कात्यायनी का स्वरूप
मां कात्यायनी शेर पर सवार रहती हैं। उनकी चार भुजाएं हैं। वह अपने एक बाएं हाथ में कमल का पुष्प और दूसरे बाएं हाथ में तलवार धारण करती हैं। वहीं, एक दाएं हाथ में अभय मुद्रा और दूसरे दाएं हाथ में वरद मुद्रा धारण करती हैं।
मंत्र- ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
प्रार्थना-चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि के छठे दिन प्रात:काल में स्नानादि से आप मुक्त हो लें। उसके बाद मां कात्यायनी की विधि विधान से विधिवत पूजा अर्चना करें। देवी कात्यायनी को अक्षत्, सिंदूर, शहद, धूप, गंध आदि चढ़ाएं। पुष्प में मां को लाल गुलाब चढ़ाएं। फिर देवी कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं। इससे आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
देवी कात्यायनी ने किया महिषासुर का वध
कात्यायन ऋषि देवी को अपनी पुत्री के रूप में चाहते थे, इसलिए मां दुर्गा अपने कात्यायनी स्वरूप में उनके यहां प्रकट हुई थीं। मां कात्यायनी ने ही महिषासुर जैसे अत्याचारी असुर का वध किया था,कहा जाता है की माँ कात्यायनी की आराधना नित्य करने से मनोकामना पूर्ण होती है और शत्रु का नाश होता है।