Home अपना उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल देवभूमि के इन दिव्यांगो के हुनर को मंच की दरकार।

देवभूमि के इन दिव्यांगो के हुनर को मंच की दरकार।

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कहा जाता है, हुनर किसी का मोहताज नहीं होता।अगर हौसले बुलन्द हों तो नामुमकिन कुछ भी नहीं।इन्ही हौसलों को समेटे पौड़ी जिले का एक दिव्यांग और गरीब परिवार कला और संस्कृति के क्षेत्र में अपने हुनर का जलवा बिखेर रहे हैं।पौड़ी जनपद के कोटमण्डल गांव में रहने वाले दिव्यांग दो भाई और एक बहन बचपन में ही दृष्टिहीन हो गए।दृष्टिहीन होने के बावजूद ये परिवार किस्मत को मात देते हुए अपनी इसे कमजोरी न मानकर अपने संगीत व कला के हुनर से अपने आप को मजबूत कर रहे हैं।संस्कृति और कला में संघर्ष कर रहे निर्मल उनकी बहन अंजली और एक भाई का हुनर गीत संगीत के क्षेत्र में कमाल का है दिव्यांग भाई निर्मल के हाथों में मानों साक्षात् सरस्वती का वास हो जिनकी कला हारमोनियम और बांसुरी बजाने में साफ़ दिखती है, तो वहीँ बहन अंजली की सुरीली आवाज मन छू जाती है। जबकि एक और दष्टिहीन भाई इन्ही गीतों में ताल देता है पर्यावरण को बचाने जैसे गीत संगीत के साथ उत्तराखण्ड की पौराणिक संस्कृति को बचाने के लिये ये परिवार संघर्ष कर रहा है। बड़े भाई निर्मल गीत संगीत के साथ ही रेडियो में क्रिकेट और टीवी में क्रिकेट मैच की इंग्लिश कमेंट्री सुनकर इंग्लिश कमेंट्री अब आसानी से बखूबी कर लेता है, साथ ही देश और विदेश में होने वाले कॉमेंट्री में आसानी से फर्क भी बता देता है।संस्कृति के क्षेत्र में काम कर रहे इस दष्टिहीन परिवार पर अब तक प्रदेश सरकार की नजर नही पडी है, जिससे इनके बेहतर मुकाम हासिल करने के सपने आज भी सपने ही हैं।इन दिव्यांग भाई बहनों को समाज कल्याण विभाग से 1000 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिमाह के तौर पर पेंशन मिलती है, जिससे इनका भरण पोषण होना सम्भव नहीं है, इसलिए परिवार आज भी संघर्षो से आगे बढ़ने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहा है आँखों की रौशनी खो चुके इस परिवार ने देशहित में कार्य करने के सपने भी पिरोये थे लेकिन शायद ये कुदरत को मंजूर न था। दिव्यांग जनों की देखरेख इनके पिता करते हैं उनका कहना है कि गरीबी और आर्थिक तंगी परिवार का पीछा नहीं छोड़ रही, दिव्यांगों के इस हुनर और प्रतिभा की सुध लेकर सरकार इन्हें बेहतर मंच दिला सके इसके लिए गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत के संज्ञान में दिव्यांगों के संघर्ष को बयां किया, तो सांसद ने कहा कि वे इनकी शिक्षा के साथ ही इन्हें रोजगार देने के लिए वे प्रयास करेंगे साथ ही प्रदेश सरकार का ध्यान भी इस परिवार की ओर लाएंगे।
अपनी कला और हुनर के दम पर दिव्यांगता को कमजोरी न मानकर संघर्ष के सहारे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते इस परिवार पर सरकार ध्यान देकर इन्हें उचित मंच दिला सके तो यह दिव्यांग जरूर एक दिन संगीत व कला के क्षेत्र में अपनी छाप छोडेंगे।