पिछले लंबे समय से कांग्रेस की नई कमेटी के घोषित होने के कयास लगाए जा रहे थे।14 दिसंबर को दिल्ली में भारत बचाओ रैली में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के अन्य कांग्रेसियों के साथ वापस देहरादून न लौटने पर माना गया कि प्रीतम सिंह नई कमेटी पर होमवर्क करने के लिए ही दिल्ली में रुक गए हैं।दिल्ली में प्रीतम सिंह ने प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह, अहमद पटेल और अन्य नेताओं से मुलाकात को भी इसी रूप में देखा गया।मंगलवार को दिल्ली से वापसी के तुरंत बाद ही प्रीतम ने प्रदेश कार्यकारिणी को भंग करने का एलान किया।प्रीतम सिंह ने मई 2017 में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला था।कांग्रेस के संविधान में दी गई व्यवस्था के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है।यानि प्रीतम अपना लगभग ढाई वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं।उत्तराखण्ड कांग्रेस के इतिहास में प्रीतम पहले ऐसे प्रदेश अध्यक्ष हैं जो ढाई वर्ष तक अपनी टीम का गठन ही न कर सके।उनसे पहले के प्रदेश अध्यक्ष रहे किशोर उपाध्याय के कार्यकाल में गठित प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी को ही उन्होंने अपने साथ बहाल रखा।इस कमेटी में नाम जुड़ते गए और कांग्रेस की यह कमेटी जंबो आकार की बन गई।कांग्रेस के कई नेताओं के भाजपा में चले जाने के बाद इस कमेटी की जगह नई कमेटी के गठन की मांग भी जोर पकड़ने लगी।चुनावों में एक के बाद एक मिली हार को देखते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने लगे थे। कयास लगाये जा रहे थे कि कांग्रेस हाईकमान जल्द ही उन्हें कुर्सी से हटा सकता है। कयासों के विपरीत प्रीतम ने न सिर्फ हाईकमान की कन्वेंस किया बल्कि अपनी नई टीम की घोषणा के लिये भी रजामंद कर दिया। प्रीतम की इस कामयाबी के पीछे नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का हाथ और एआईसीसी के उत्तराखण्ड प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह का साथ बताया जा रहा है।