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हल्द्वानी अतिक्रमण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड़ हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक…..

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हल्द्वानी में बनभूलपुरा रेलवे अतिक्रमण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हजारों लोगों को राहत देते हुए उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के उस आदेश पर स्टे लगा दिया है, जिसमें रेलवे को सात दिन में अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया गया था। गुरुवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर कहा कि जमीन खरीद-फरोख्त का सवाल है। सात दिन में 50 हजार लोगों को इस तरह से नहीं हटाया जा सकता। पुनर्वास की व्यवस्था क्या है, भूमि की प्रकृति क्या रही है, इन सवालों पर जवाब दें।

मामले के अनुसार हल्द्वानी के वनभूलपुरा बस्ती में 4400 हजार परिवारों पर रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर रहने का आरोप है। मामले में रेलवे द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2022 में रेलवे को अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था, जिससे इस बस्ती में रहने वाले लोगों पर बेघर होने का खतरा मंडरा रहा था।

स्थानीय लोगों द्वारा हाईकोर्ट के इस फैसले का सड़कों पर उतरकर विरोध किया, जिसमें उन्हें राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है। वहीं  इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ कांग्रेस विधायक सुमित ह्रदयेश की अगुवाई में वहां के रहने वाले लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, इसके बाद प्रशांत भूषण ने भी एक याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को एकसाथ सुनने का फैसला लिया, और आज मामले पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है।

हल्द्वानी में अनधिकृत कॉलोनियों को हटाने के विरोध में हजारों लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं, रेलवे की इस जमीन पर अवैध कब्जा हटाने के विरोध में 4 हजार से ज्यादा परिवार हैं। स्थानीय लोगों का सवाल है कि अगर रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हुआ तो फिर सरकार हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, बिजली का बिल कैसे लेती रही? अगर रेलवे की जमीन है तो फिर सरकार ने खुद यहां तीन-तीन सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल कैसे बना दिए ? इतना ही नहीं लोगों का कहना है कि सरकारी स्कूल भी गिरेंगे तो बच्चों को अस्थाई रूप से पढ़ाने का प्रशासन सोचता है और हजारों लोग बेघर होकर कहां जाएंगे, ये क्यों नहीं सोचा जाता ? जब सरकार तक को नहीं पता होता कि जमीन रेलवे की है या सरकारी तो फिर सिर्फ जनता क्यों अतिक्रमणकारी है ? इन सवालों का जवाब मिलना बाकी है, लेकिन प्रशासन ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है।

2013 में उत्तराखंड हाई कोर्ट में हल्द्वानी में बह रही गोला नदी में अवैध खनन को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी, इस याचिका में कहा गया था कि रेलवे की भूमि पर अवैध रूप से बसाई गई गफूर बस्ती के लोग गोला में अवैध खनन करते हैं। इसकी वजह से रेल की पटरियों को और गोला पुल को खतरा है। 2017 में रेलवे ने राज्य सरकार के साथ मिलकर क्षेत्र का सर्वे किया गया और 4365 अवैध कब्जेदारों को चिह्नित किया गया, लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट में फिर एक रिट पिटिशन दाखिल की गई, जिसमें कहा गया कि क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर किए गए अतिक्रमण को हटाने में देरी की जा रही है, जिस पर मार्च 2022 में हाई कोर्ट नैनीताल जिला प्रशासन को रेलवे के साथ मिलकर अतिक्रमण हटाने का प्लान बनाने का निर्देश दिया गया। इसके बाद रेलवे ने HC में अतिक्रमण हटाने के संबंध में एक विस्तृत प्लान दाखिल किया। हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे को निर्देश दिया कि एक हफ्ते का नोटिस देकर भूमि से अवैध अतिक्रमणकारियों को तत्काल हटाया जाए।