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नागरिकता संशोधन बिल, आज लोकसभा में होगा पेश

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भाजपा द्वारा 2014 और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में नागरिकता संशोधन बिल पारित कराने का वादा अपने चुनावी घोषणापत्र में किया था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार के कार्यकाल में भी इस बिल को लोकसभा में पारित करा दिया गया था, लेकिन तब राज्यसभा में पर्याप्त समर्थन की कमी के कारण यह पारित नहीं हो पाया था।उत्तर-पूर्वी राज्यों के विरोध के बीच आज केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पेश करेंगे।इस बिल के पारित होते ही छह दशक पुराना नागरिकता कानून-1955 बदल जाएगा और तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानस्तिान से आने वाले गैरमुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की प्रक्रिया बेहद सहज हो जाएगी। सरकार की योजना सोमवार को लोकसभा में यह बिल पारित कराने के बाद मंगलवार को राज्यसभा में भी इस पर मंजूरी की मुहर लगवा लेने की है।एक तरफ जहां पूरा विपक्ष इस बिल का विरोध करने की तैयारी किए बैठा है, वहीं केंद्र की राजग सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा को अपने कई साथी दलों को भी इस बिल पर समर्थन के लिए साधने की चुनौती का सामना करना होगा।बिल के प्रावधानों पर मचे सियासी महाभारत के बीच भाजपा, कांग्रेस, टीएमसी सहित कई दलों ने अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी कर दिया है।
केंद्र सरकार के सहयोगी जदयू ने बिल का विरोध किया है,लेकिन हाल ही में राजग से नाता तोड़ने वाली शिवसेना के बिल का समर्थन करने के रुख से सरकार के लिए शायद ही लोकसभा में कोई परेशानी खड़ी होगी।सोमवार के लिए जारी लोकसभा की कार्यसूची के हिसाब से शाह यह बिल दोपहर बाद पेश करेंगे और इसके बाद तत्काल ही इस पर चर्चा की जाएगी।लोकसभा में संख्या बल भी सरकार के पक्ष में है,इस लिहाज से सभी निगाहें राज्यसभा में इस बिल के पेश होने पर टिकी होंगी।हालांकि इस बार उच्च सदन में भी सरकार के रणनीतिकारों ने पहले ही बिल पारित कराने के लिए जरूरी संख्या बल का इंतजाम कर लिया है।बीजेडी, टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस जैसे दलों ने सरकार के रणनीतिकारों को उच्च सदन में सीधे या परोक्ष रूप से मदद करने का भरोसा दिया है।राज्यसभा में 7 मनोनीत और निर्दलीय सांसदों के समर्थन ने भी सरकार की ताकत में और इजाफा किया है।

नागरिकता संशोधन बिल का उत्तर-पूर्वी राज्यों में बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। नागरिकों के बड़े हिस्से और संगठनों ने इस बिल को असम समझौते-1985 के प्रावधानों के खिलाफ बताया है, जिसमें 24 मार्च, 1971 से बाद वहां बसने वाले सभी नागरिकों को बाहरी मानते हुए निर्वासित करने की बात कही गई है। उत्तर-पूर्वी छात्रों के संगठन नेस्को ने 10 दिसंबर को क्षेत्र में 11 घंटे के बंद की घोषणा की हुई है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक अत्याचार के चलते भारत में 31 दिसंबर, 2014 तक शरण लेने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सभी लोगों को अवैध घुसपैठिया नहीं माना जाएगा, बल्कि इन्हें भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी। इन नागरिकों पर नागरिकता पाने के लिए भारत में रहने की बाध्यता अवधि को भी 11 साल के बजाय घटाकर 6 साल माना जाएगा।