गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि उस दौर में भारतीय डाक सेवा की स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी। उस वक्त पत्र कई महीनों बाद पहुंचता था। जॉन मैकेनन और एलिजाबेथ लुईस के कुछ ऐसे ही लेटर्स का जिक्र उनके करीबी दोस्त एडम माइगन ने अपनी किताब मसूरी मर्चेंट द इंडियन लैटर्स में किया है। ये बुक लिखने के 50 साल बाद पब्लिश हुई थी। इस प्रेम कहानी के हीरो जॉन मैकेनन की मौत 32 साल की छोटी उम्र हो गई थी। मेरठ के सेंट जोंस चर्च में आज भी उनकी कब्र मौजूद है। आज भले ही कम लोग जॉन मैकेनन को जानते हैं, लेकिन इनके द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को आज हर प्रेमी निभाता है।
गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि प्यार किसी से भी हो सकता है। इसी के इजहार का दिन वेलेंटाइन डे है। वे कहते हैं कि आज के दौर में पूरी तरह से वैलेंटाइन डे का बाजारीकरण कर दिया गया है। जिससे इस दिन का असली महत्व समाप्त होता जा रहा है।
ऐसा माना जाता है कि वैलेंटाइन-डे मूल रूप से सैंट वैलेंटाइन के नाम पर रखा गया है। लेकिन सैंट वैलेंटाइन के विषय में ऐतिहासिक तौर पर विभिन्न मत हैं। 1969 में कैथोलिक चर्च ने कुल ग्यारह सैंट वैलेंटाइन के होने की पुष्टि की और 14 फरवरी को उनके सम्मान में पर्व मनाने की घोषणा की। इनमें सबसे महत्वपूर्ण वैलेंटाइन रोम के सैंट वैलेंटाइन माने जाते हैं।
वैलेंटइन डे की शुरुआत अमेरिका में सैंट वैलेंटाइन की याद में हुई थी। सबसे पहले यह दिन अमेरिेका में ही मनाया गया, फिर इंग्लैंड में इसे मनाने की शुरुआत हुई. इसके बाद धीरे-धीरे पूरे विश्व में ये दिन मनाया जाने लगा। अलग-अलग देशों में ये दिन अलग नामों के साथ भी मनाया जाता है। चीन में इसे नाइट्स आफ सेवेन्स, जापान व कोरिया में वाइट डे के नाम से जाना जाता है। भारत में वैलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत 1992 के आसपास हुई थी।