उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला शनिवार 16 जुलाई को मनाया जाएगा। प्रकृति संरक्षण को समर्पित यह पर्व प्रदेश में अब वृहद स्तर पर मनाया जाने लगा है, राज्य सरकार इस दिन प्रदेशभर में बड़े स्तर पर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी हरेला परंपरागत तौर पर मनाया जाता है, सावन लगने से नौ दिन पहले 5 या 7 प्रकार के अनाज रिंगाल की छोटी टोकरियों में बोया जाता है, सुबह ताजे जल से इसे सिंचित किया जाता है। सूर्य की सीधी रोशनी से भी इसे बचाया जाता है, 9वें दिन इसकी गुड़ाई की जाती है वहीं 10वें दिन यानि हरेला पर्व के दिन इसे काटा जाता है।और विधि अनुसार घर के बुजुर्ग या पंडित सुबह पूजा-पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं। उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है।
हरेला पर्व के अवसर इस बार सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। इसके मद्देनज़र स्कूलों में आज हरेला पर्व मनाया गया। इस सम्बन्ध में महानिदेशालय विद्यालयी शिक्षा उत्तराखंड के संयुक्त निदेशक डॉ० एस० बी० जोशी द्वारा जारी आदेश के अनुसार इस पर्व का मुख्य उद्देश्य उत्तराखण्ड की भावी पीढ़ी को प्रकृति से जोड़ना है, जिससे उनके हृदय में प्रकृति के प्रति प्यार व संवेदना उत्पन्न हो सके।
उत्तराखण्ड के समस्त सरकारी व गैर-सरकारी विद्यालयों में विद्यालय प्रशासन द्वारा बच्चों के साथ हरेला पर्व मनाया जाना अति-महत्वपूर्ण है। उत्तराखण्ड के समस्त सरकारी व गैर सरकारी विद्यालयों में बच्चों के साथ दिनांक 15 जुलाई, को हरेला पर्व मनाये जाने के दृष्टिगत विद्यालय प्रशासन को अवगत कराते हुए पर्व से सम्बंधित कम से कम 05 फोटो व रिपोर्ट आयोग को उपलब्ध कराने के निर्देश है।
उत्तराखण्ड संरक्षण आयोग के उक्त संदर्भित पत्र दिनांक 11 जुलाई की प्रति प्रेषित करते हुए मुझे यह कहने का निदेश हुआ कि कृपया आयोग के निर्देशानुसार बच्चों के साथ दिनांक 15 जुलाई 2022 को हरेला पर्व मनाये जाने के दृष्टिगत विद्यालय प्रशासन को अवगत कराते हुए पर्व से सम्बंधित कम से कम 05 फोटो व रिपोर्ट आयोग के साथ ही महानिदेशालय को भी उपलब्ध कराने का कष्ट करें।