Home अपना उत्तराखंड नैनीताल कुमाऊँ की खड़ी होली का अलग है अंदाज।

कुमाऊँ की खड़ी होली का अलग है अंदाज।

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पूरे देश में होली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, इस दिन बच्चे हों या बुजुर्ग हर कोई रंगों में सराबोर होता है, हर कोई अपने अंदाज में होली मनाता है। वहीं बात करें उत्तराखण्ड के कुमाऊं अंचल की तो यहां की खड़ी होली का अपना अलग ही रंग है। कुमाऊं की खड़ी होली का नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है, ढोल की थाप पर होल्यार रंगों के इस पर्व पर रंगे नजर आते है। देशभर में खेली जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्री के बाद चीर बंधन के साथ शुरू होती है जो छलडी तक चलती है। होल्यारों द्वारा मन्दिर से शुरू हुई ये होली गांव के हर घर में जाकर गायी जाती है, जिसके बाद परिवार को आशीष भी दी जाती है।

गौरवशाली इतिहास समेटे पहाड़ की होली का ऐसा रंग कुमाऊं में ही देखा जाता है।हालांकि पिछले कुछ सालों में रीतिरिवाज, परम्पराओं में बदलाव आए। लेकिन ये होली आज भी नजीर बनी हुई है,पहाड़ों में आज भी खड़ी होली परम्परागत तरीके से कायम है। गांवो से पुरुषों के पलायन के बाद महिलाएं इस पारम्परिक होली को बखूबी आगे बढ़ा रही हैं, स्वांग रच होलियार पूरे नगर भ्रमण कर होली के लोक गीत गाते दिखाई देते हैं।

चन्द शासन काल से चली आ रही ये परम्परा आज भी अपने महत्व को कुमाऊं की वादियों में समेटे हुये है। कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है। ढोल की थाप के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना और राग-रागिनियों का समावेश इस खड़ी होली में होता है।