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राज्यसभा में भी गूंजा दिल्ली अग्निकांड

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रविवार सुबह दिल्ली में हुए भीषण अग्निकांड़ की गूंज सोमवार को राज्यसभा में भी सुनाई दी।रविवार तड़के हुए भीषण अग्निकांड में पांच नाबालिग समेत 43 मजदूरों की मौत हो गई थी।राज्यसभा अध्यक्ष वैंकेया नायडु ने इस हादसे में मरने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा।वहीं इस मामले में राज्यसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए बीजेपी सांसद विजय गोयल ने कहा कि उपहार कांड से हमने कुछ नहीं सीखा है।
विजय गोयल ने कहा कि मैं फायरकर्मी और पुलिसवालों का धन्यवाद देता हूं जिन्होंने 60 से ज्यादा लोगों की जान बचाई।उन्होंने कहा कि मैं किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा हूं।आज चांदनी चौक में ऐसे कई और इमारतें है जहां छोटी-छोटी फैक्ट्री चल रही हैं।उन्होंने कहा कि मजिस्ट्रेट जांच और मुआवजे से कुछ नहीं होगा हमें मिलकर काम करना होगा नहीं तो ऐसे हादसे बंद नहीं होंगे।
वहीं आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि हादसे में मरने वाले 43 लोग यहां मजदूरी करने के लिए आए थे। बाहर से ताला बंद था और अंदर हवा आने के लिए कुछ नहीं था। इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए।इस मामले में सबकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए चाहे उसमें एमसीडी हो, दिल्ली सरकार हो या फिर डीडीए हो, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं ना हो।
यह घटना तड़के करीब साढ़े तीन बजे की है।रिहायशी इलाके की एक इमारत में चल रही फैक्टरी में आग दूसरी मंजिल से शुरू हुई।भूतल और पहली मंजिल के लोग तो निकल गए पर तीसरे और चौथे माले पर 65 लोग फंसे रह गए।जलने से चार लोगों की मौत हुई,जबकि बाकी सबका दम घुट गया।घटना के वक्त सभी लोग सो रहे थे, इसलिए उन्हें तुरंत आग का पता नहीं चला। दमकल की 21 गाड़ियों ने करीब ढाई घंटे की मशक्कत के बाद आग को काबू किया।फंसे हुए लोगों को निकालकर लेडी हार्डिंग, एलएनजेपी व आरएमल अस्पताल में भर्ती कराया गया। मृतकों में अधिकतर बिहार के रहने वाले थे।इस चार मंजिला इमारत में प्लास्टिक उत्पाद बनते थे।अग्निशमन सेवा के कर्मचारी राजेश शुक्ला ने जान पर खेलते हुए धुएं के गुबार के बीच इमारत के भीतर पहुंचे।एक-एक कर 11 लोगों को वह अपने कंधे पर बाहर लेकर आए।जीवित बचे लोगों के लिए राजेश किसी मसीहा से कम नहीं थे।इमारत में फंसे लोग खुद को बचाने की गुहार लगाते रहे।लेकिन कुछ ही पल बाद आवाजें बंद होने लगी।कुछ को बदहवास हालत में बचाव दल ने निकाला।इस दौरान पीड़ित परिजन अपनों की तलाश में भटकते रहे।उन्हें कुछ पता नहीं चल रहा था।

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