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देहरादून: स्वच्छ शहर की लिस्ट से हुआ बाहर, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का सवाल कोसों पीछे छूटा…

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उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना एक अलग राज्य  और देहरादून बना  राजधानी। इसके बाद यहां शहरीकरण की ऐसी अनियंत्रित दौड़ शुरू हुई कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का सवाल कोसों पीछे छूट गया।यकीन नहीं होता कि यह वही दून है, जिसे कभी रिटायर्ड लोगों का शहर कहा जाता था। तब जहां भी नजर जाती आम-लीची से लकदक बाग और फसलों से लहलहाते खेत नजर आते थे। फिर वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड बना और दून राजधानी। इसके बाद यहां शहरीकरण की ऐसी अनियंत्रित दौड़ शुरू हुई कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का सवाल कोसों पीछे छूट गया।

खेतों और बगीचों में भवन खड़े होने लगे और सड़कों पर वाहनों की रेलमपेल कई गुना बढ़ गई। अब फिजा में धुआं ही धुआं नजर आता है। वायु प्रदूषण की स्थिति मानक से तीन से चार गुना तक पहुंच गई है। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर सबसे पुराने औसत आंकड़े 2008 के हैं और तब यह स्थिति आज की तुलना में आधी से भी कम (116 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) थी। जिस रिस्पना और बिंदाल नदी को एक दौर में सदानीरा कहा जाता था, वहां अब पानी की जगह गंदगी बह रही है।

इन नदियों का पानी मानक से 76 गुना प्रदूषित हो गया है। हरियाली की बात करें तो वर्ष 2000 से 2015 के बीच सरकारी आंकड़ों में ही 30 हजार से अधिक पेड़ काटे डाले गए। हर साल पर्यावरण संरक्षण के नाम पर हजारों पौधे लगाए जाते हैं, मगर उनकी प्रकृति सजावटी प्रजाति के पादपों से आगे नहीं बढ़ पाती। लिहाजा, शहर के 15 किलोमीटर के दायरे में ही तापमान में पांच डिग्री का अंतर पाया गया है। साफ है कि जहां जितनी संख्या में पेड़ कम हैं, वहां का तापमान उतना ही अधिक रहता है।

दून में धूल-धुएं के कण रेसपायरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (आरएसपीएम) की मात्रा औसत रूप में तीन से चार गुना तक और दैनिक आधार पर ढाई गुना तक पाई गई है। मानकों की बात करें तो आरएसपीएम-10 की मात्रा औसत रूप में 60, दैनिक आधार पर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। इससे स्पष्ट हो जाता है कि दून की हवा सेहत के लिए कितनी सुरक्षित रह गई है। हालांकि, यह आंकड़े पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हैं, जो सीमित स्थलों पर लगे हैं। बोर्ड के समानांतर जब वर्ष 2018 में निजी संगठन गति फाउंडेशन ने शहर के विभिन्न हिस्सों से आंकड़े जुटाए तो प्रदूषण का स्तर और भी ऊपर पाया गया। दूसरी तरफ वर्ष 2017 के अंत में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने देश के तमाम शहरों के वायु प्रदूषण की जो रिपोर्ट संसद में रखी थी, उसमें दून सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में छठे स्थान पर पाया गया।

76 गुना प्रदूषित रिस्पना-बिंदाल में टोटल कॉलीफार्म 3800 एमपीएन 

रिस्पना और बिंदाल नदी के पानी में टोटल कॉलीफार्म (विभिन्न हानिकारक तत्वों का मिश्रण) की मात्रा 3800 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) पाई गई, जबकि पीने योग्य पानी में यह मात्रा प्रति 100 एमएल में 50 से अधिक नहीं होनी चाहिए। जिस फीकल कॉलीफार्म की मात्रा शून्य होनी चाहिए, उसकी दर 1460 एमपीएन/100 एमएल पाई गई। पिछले साल स्पैक्स की ओर से फरवरी में कराई गई नदी के पानी की जांच में प्रदूषण का यह स्तर सामने आया था। इसके अलावा नदी के पानी में जहां घुलित ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा मानक से बेहद कम पाई गई, वहीं बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा बेहद अधिक है। तमाम अन्य हानिकारक तत्वों की मात्रा भी सीमा से कोसों अधिक रिकॉर्ड की गई।

रिस्पना-बिंदाल के पानी की स्थिति –(टोटल कॉलीफार्म व फीकल कॉलीफार्म की मात्रा एमपीएन/100 एमएल में और अन्य की मात्रा एमजी/लीटर में)

तत्व, मानक, पाई गई मात्रा 

  • तेल-ग्रीस, 0.1, 11 से 18
  • टीडीएस, 500, 740 से 1200
  • बीओडी, 02, 126 से 144
  • डीओ, 06 से अधिक, अधिकतम 1.4
  • लैड,  0.1, 0.54
  • नाइट्रेट, 20, 388 से 453
  • टोटल कॉलीफार्म, 50, 1760 से 3800
  • फीकल कॉलीफार्म, शून्य, 516 से 1460