देहरादून के ऐतिहासिक झंडेजी मेले का सोमवार से आगाज हो गया। सुबह करीब छह बजे से विशेष पूजा-अर्चना का दौर शुरू हुआ। जिसके बाद पुराने झंडेजी को विधि-विधान से उतारकर पुराने गिलाफ हटाए गए। नए झंडेजी को गाय के दूध, दही, घी, मक्खन, गोमूत्र, गंगाजल से स्नान कराया गया। दोपहर से शाम तक झंडेजी पर गिलाफ चढ़ाया जाएगा।
वहीं शाम को बाज के आने का दौर शुरू हो गया। तीन बाज दरबार साहिब के ऊपर उढ़ते दिखाई दिए। मान्यता है कि हर साल जैसे ही झंडेजी का आरोहण होता है। एक बाज परिक्रमा करते हुए उनके ऊपर से गुजरता है। इसे गुरु रामराय महाराज की सूक्ष्म उपस्थिति एवं आशीर्वाद माना जाता है। मेले में पंजाब से पहुंचे कुलविंदर सिंह बग्गा ने बताया कि यह बाज हर साल झंडेजी के आरोहण पर परिक्रमा करता है। इसे गुरु महाराज का आशीर्वाद माना जाता है।
मेले में पहले दिन करीब 20 हजार श्रद्धालु मौजूद रहे। वहीं झंडेजी मेले के चलते सहारनपुर रोड में जाम लगा रहा। दरबार साहिब समिति की ओर से सात बड़े लंगर का आयोजन किया गया है।जबकि शहर भर में विभिन्न जगह छोटे-छोटे लंगर लगाए गए हैं। सुरक्षा के मद्देनजर दरबार साहिब के चारों ओर पुलिस का कड़ा पहरा है।
बता दें कि दर्शनी गिलाफ के भीतर सादे गिलाफ चढ़ाए जाते हैं। इनकी संख्या 41 होती है। मध्यभाग में शनील के गिलाफ चढ़ाए जाते हैं। इनकी संख्या 21 होती है। सबसे बाहर की ओर दर्शनी गिलाफ चढ़ाया जाता है।
देहरादून के संस्थापक हैं श्री गुरु रामराय जी महाराज
झंडेजी मेले का इतिहास देहरादून के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। श्री गुरु रामराय महाराज जी का देहरादून आगमन 1676 में हुआ था। गुरु महाराज जी ने श्री दरबार साहिब में लोक कल्याण के लिए एक विशाल झंडा लगाकर लोगों को इस ध्वज से आशीर्वाद प्राप्त करने का संदेश दिया था। इसके साथ ही श्री झंडा साहिब के दर्शन की परंपरा शुरू हुई। श्री गुरु रामराय महाराज को देहरादून का संस्थापक कहा जाता है। श्री गुरु रामराय महाराज जी सिखों के सातवें गुरु गुरु हरराय के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका जन्म होली के पांचवें दिन वर्ष 1646 को पंजाब के जिला होशियारपुर (अब रोपड़) के कीरतपुर गांव में हुआ था।