चैती मंदिर का निर्माण मूर्ति भंजक कहे जाने वाले शासक औरंगजेब के सहयोग से हुई। उसके शासन काल के दौरान ही चैती मंदिर परिसर मेला लगना शुरू हुआ। बताया जाता है कि औरंगजेब की बहन की तबियत खराब हुई तो कुछ सलाहकारों ने काशीपुर स्थित एक मठ से मन्नत मांगने की सलाह दी। औरंगजेब ने बहन की तबियत ठीक होने पर मंदिर निर्माण की बात कही और मुराद पूरी होने पर मंदिर निर्माण भी कराया।
उज्जैनी शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्ध भगवती बाल सुंदरी का मंदिर शक्तिपीठ भी माना जाता है। मंदिर के प्रधान पंडा वंश गोपाल ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जहां-जहां सती के अंग गिरे थे वहां शक्ति पीठ बने हैं। बाल सुंदरी का मंदिर भी इसी शक्ति पीठ में से एक है।
राजा ने पत्थर उखाड़ फेंकने को कहा, लेकिन वह नहीं उखड़ा
एक और किंवदंती के अनुसार एक बार कुमाऊं के राजा इस इलाके से गुजर रहे थे तो उनके घोड़े के पैर से एक पत्थर को ठोकर लगी। राजा ने अपने कारिंदों से पत्थर उखाड़ फेंकने को कहा, लेकिन वह नहीं उखड़ा।
इसी दौरान लखीमपुर खीरी निवासी दो पंडित गयादीन और बंदी दीन राजा से मिलने पहुंचे तो राजा ने पत्थर की ओर इशारा करके जानना चाहा। सिंदूर की आकृति से देवी स्वरूप बने पत्थर को दोनों पंडितों ने शक्ति पीठ बताया। उस समय के शासक औरंगजेब के डर से कोई मंदिर नहीं बना रहा था।
मंदिर का निर्माण मुसलमान कारीगरों ने किया
एक बार बादशाह औरंगजेब की बहन जहानआरा की तबियत खराब हुई तो उनके सलाहकारों ने काशीपुर स्थित एक मठ में मन्नत मांगने की सलाह दी। बादशाह ने मन्नत में कहा कि अगर मेरी बहन ठीक हो गई तो वह मंदिर बना देगा।
उसके ठीक होने पर औरंगजेब ने मंदिर का निर्माण करा दिया। तभी से मठ की पूजा होती है। देवी प्रतिमा केवल मेले के दौरान ही स्थापित की जाती है। मुख्य पंडा विकास अग्निहोत्री ने बताया कि मंदिर का निर्माण मुसलमान कारीगरों ने किया है। एक मठ के ऊपर बड़ी गुंबद और तीनों देवियों के शक्ति स्वरूप तीन गुंबद बने हुए हैं।
डकैतों की पसंद थे नखासा बाजार के घोड़े
मां भगवती बाल सुंदरी के ऐतिहासिक चैती मेले में लगने वाला नखासा मेला उत्तरी भारत का प्रमुख मेला है। इस मेले में कभी चंबल के डाकू अपनी पसंद का घोड़ा खरीदकर ले जाते थे। घोड़ा व्यापारियों के अनुसार इस मेले से सुल्ताना डाकू, डाकू मान सिंह के अलावा फूलन देवी भी घोड़े खरीद कर ले जाती थीं। बताया जाता है कि चैती मेला में नखासा मेला करीब चार सौ साल पहले रामपुर निवासी घोड़ों के बड़े व्यापारी हुसैन बख्श ने शुरू किया था।
चैती मेले में लगे नखासा बाजार में पुराने घोड़ा व्यापारियों में से एक रामपुर निवासी चौधरी शौकत अली भी हैं। पांच पीढ़ियों से घोड़ों का कारोबार चौधरी शौकत अली का परिवार कर रहा हैं। अब छठी पीढ़ी में उनका बेटा सलमान ने खानदानी कारोबार को संभाल लिया है। अपने पुत्र के साथ कारोबार में हाथ बंटाने नखासा मेला में आए चौधरी शौकत अली ने बताया कि 400 साल पहले यहां भगवती बाल सुंदरी का मेला नहीं लगता था। सिर्फ मंदिर में पूजा होती थी, करीब 150 साल से मेला लगने लगा है। तब उनके दादा के पिता हुसैन बख्श ने पंडाओं से मिल कर यहां नखासा बाजार शुरू किया था।
मेले में पॉलिथीन का प्रयोग वर्जित
उत्तर भारत के सबसे बड़े मेले में शुमार चैती मेले में इस बार पॉलिथीन का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित है। मेले में पॉलिथीन में सामान बेचने वाले दुकानदारों पर पांच हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया है। निगरानी के लिए नगर निगम की टीम का गठन कर दिया है। साथ ही पॉलिथीन का प्रयोग न करने के लिए लगातार मुनादी की जा रही है।
चैती मेले में मां भगवती बाल सुंदरी देवी का डोला आने के बाद प्रतिदिन 50 से 60 हजार श्रद्धालु मां भगवती के दर्शन करने आते हैं। इस दौरान काफी मात्रा में देवी को प्रसाद चढ़ाया जाता है। बीते दो साल से मेले में पॉलिथीन के प्रयोग को वर्जित किया है, लेकिन बीते साल मेला समाप्त होने के बाद भी पूरे मेले स्थल पर कई माह तक पॉलिथीन पड़ी रही थी। इस बार मेला प्रशासन ने मेले में पॉलिथीन के प्रयोग को पूरी तरह वर्जित रखने के लिए नगर निगम की चार सदस्यीय एक टीम का गठन किया है। पांच हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान भी रखा है।