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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने रजतोत्सव के क्रम में विधानसभा के विशेष सत्र को किया संबोधित…

25 वर्षों की यात्रा के दौरान उत्तराखंड ने हासिल किए विकास के प्रभावशाली लक्ष्य

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सोमवार को उत्तराखंड राज्य स्थापना, रजतोत्सव के अवसर पर आयोजित, उत्तराखंड विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने इस ऐतिहासिक अवसर के लिए उत्तराखंड विधान सभा के पूर्व और वर्तमान सदस्यों तथा सभी राज्यवासियों को बधाई देते हुए कहा कि, श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में, यहां के जनमानस की आकांक्षा के अनुरूप, बेहतर प्रशासन और संतुलित विकास की दृष्टि से, नवंबर, 2000 में इस राज्य की स्थापना की गई। विगत पचीस वर्षों की यात्रा के दौरान उत्तराखंड के लोगों ने विकास के प्रभावशाली लक्ष्य हासिल किए हैं। पर्यावरण, ऊर्जा, पर्यटन, स्वास्थ्य-सेवा और शिक्षा के क्षेत्रों में राज्य ने सराहनीय प्रगति की है। इसी तरह डिजिटल और फिजिकल कनेक्टिविटी तथा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलमेंट के क्षेत्रों में भी विकास हुआ है।

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि विकास के समग्र प्रयासों के बल पर राज्य में मानव विकास सूचकांक के मानकों पर सुधार हुआ है। राज्य में साक्षरता बढ़ी है, महिलाओं की शिक्षा में विस्तार हुआ है, मातृ एवं शिशु-मृत्यु-दर में कमी आई है, राज्य में स्वास्थ्य- सेवाओं को सुलभ बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

राष्ट्रपति ने राज्य में महिला सशक्तिकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की विशेष सराहना करते हुए कहा कि, इससे राज्य में सुशीला बलूनी, बछेन्द्री पाल, गौरा देवी, राधा भट्ट और वंदना कटारिया जैसी असाधारण महिलाओं की गौरवशाली परंपरा आगे बढ़ेगी। इसी तरह ऋतु खंडूरी भूषण को राज्य की पहली महिला विधान सभा अध्यक्ष नियुक्त करके उत्तराखंड विधान सभा ने अपना गौरव बढ़ाया है। उन्होंने कहा वे सभी हितधारकों के सक्रिय प्रयास से उत्तराखंड विधान सभा में महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी होते देखना चाहेंगी।

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि उत्तराखंड की इस देव-भूमि से अध्यात्म और शौर्य की परम्पराएं प्रवाहित होती रही हैं। कुमांऊ रेजीमेंट और गढ़वाल रेजीमेंट के नाम से ही यहां की शौर्य परंपरा का परिचय मिलता है। यहां के युवाओं में भारतीय सेना के जरिए मातृ-भूमि की रक्षा करने के प्रति उत्साह दिखाई देता है। उत्तराखंड की यह शौर्य परंपरा सभी देशवासियों के लिए गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि भारत की लोकतान्त्रिक परंपरा को शक्ति प्रदान करने में भी उत्तराखंड के अनेक जन-सेवकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने ’नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता’ के निर्माण के लिए संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत प्रावधान किया था। संविधान निर्माताओं की इसी भावना के अनुरूप अब उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता विधेयक लागू कर दिया है, जिसकी वो सराहना करती हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विधान सभा में 550 से अधिक विधेयक पारित किए गए हैं। उन विधेयकों में उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक, उत्तराखंड जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक तथा नकल विरोधी विधेयक शामिल हैं। इससे पारदर्शिता, नैतिकता और सामाजिक न्याय की भावना मजबूत हुई है।

राष्ट्रपति ने कहा कि विधान सभाएं हमारी संसदीय प्रणाली का प्रमुख स्तम्भ हैं। बाबासाहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान निर्माताओं ने संसदीय प्रणाली को अपनाकर निरंतर उत्तरदायित्व को अधिक महत्व दिया था। जनता के प्रति निरंतर उत्तरदाई बने रहना संसदीय प्रणाली की शक्ति भी है और चुनौती भी। विधायक-गण, जनता और शासन के बीच की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं। जमीनी स्तर पर क्षेत्र की जनता से जुड़कर उनकी सेवा करने का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात है।

राष्ट्रपति ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि एक विधायक के रूप उन्हें भी नौ वर्ष जन-सेवा का अवसर मिला है। इसलिए वो अपने अनुभव से कह सकती हैं कि यदि विधायक सेवा-भाव से निरंतर जनता की समस्याओं के समाधान तथा उनके कल्याण में सक्रिय रहेंगे तो जनता और जन-प्रतिनिधि के बीच विश्वास का बंधन अटूट बना रहेगा। उन्होंने अपील करते हुए कहा कि विकास तथा जन-कल्याण के कार्यों को सभी लोग पूरी निष्ठा के साथ आगे बढ़ाएं। ऐसे कार्य दलगत राजनीति से ऊपर होते हैं। सबको समाज के वंचित वर्गों के कल्याण एवं विकास पर विशेष संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की जरूरत है।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि उत्तराखंड विधान सभा में इस वर्ष राष्ट्रीय ई-विधान एप्लीकेशन की व्यवस्था का शुभारंभ हुआ है, इसके माध्यम से दो सत्रों का संचालन किया जा चुका है। इस एप्लीकेशन के जरिये सभी विधायक-गण, संसद तथा अन्य विधान-सभाओं एवं विधान परिषदों के बेस्ट प्रेक्टिस को अपना सकते हैं।

संबोधन में अंत में राष्ट्रपति ने कहा कि उत्तराखंड में अनुपम प्राकृतिक संपदा और सौन्दर्य विद्यमान हैं। प्रकृति के इन उपहारों का संरक्षण करते हुए, राज्य को विकास के मार्ग पर आगे ले जाना है। उत्तराखंड की 25 वर्ष की विकास-यात्रा, विधायकों के योगदान से ही संभव हो पाई है। उन्होंने उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा कि आगे भी सभी विधायक जन-आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति देते रहेंगे। ’राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना के साथ राज्य तथा देश को विकास-पथ पर तेजी से आगे ले जाने की जरूरत है। उन्होंने अपने संबोधन का समापन उत्तराखंड के सभी निवासियों को भविष्य की मंगलकामना देने के साथ की।

राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने अपने अभिभाषण में प्रदेश की 25 वर्ष की विकास यात्रा को रेखांकित करते हुए कहा कि यह कालखण्ड उत्तराखण्ड के लिए आर्थिक समृद्धि, सुशासन, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण और आधारभूत संरचना निर्माण का स्वर्णिम दौर रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड “समृद्ध एवं सशक्त उत्तराखण्ड” की दिशा में निरंतर अग्रसर है।

राज्यपाल ने माननीय राष्ट्रपति का विशेष आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके सानिध्य एवं मार्गदर्शन से प्रदेशवासियों को नई प्रेरणा मिली है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति महोदया का देवभूमि उत्तराखण्ड के प्रति स्नेह और संवेदना हम सभी के लिए गौरव का विषय है।

राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में कहा कि इस विशेष सत्र के माध्यम से राज्य की अब तक की विकास यात्रा पर चर्चा की जाएगी और आगामी वर्षों के लिए नए विकास रोडमैप का निर्माण किया जाएगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह सत्र उत्तराखण्ड के उज्ज्वल भविष्य की मजबूत नींव रखेगा। उन्होंने कहा कि “विकसित उत्तराखण्ड” का अर्थ केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि समावेशी और चहुँमुखी विकास से है, जहाँ “प्रकृति और प्रगति दोनों साथ चलें।” उन्होंने प्रदेश के लिए “समृद्ध गाँव, सशक्त युवा, सशक्त नारी और सुरक्षित पर्यावरण” का मंत्र दिया।

राज्यपाल ने कहा कि आने वाले 25 वर्षों में उत्तराखण्ड को आध्यात्मिकता, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, जैविक कृषि और हरित ऊर्जा के आदर्श राज्य के रूप में विकसित किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि पलायन रोकने, स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान देने और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक से जोड़ने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि सामूहिक प्रयासों से उत्तराखण्ड “विकसित भारत 2047” के लक्ष्य में अग्रणी भूमिका निभाएगा। उन्होंने सभी जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे एकजुट होकर प्रदेश के हर नागरिक के जीवन में समृद्धि और सम्मान सुनिश्चित करें।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि उत्तराखंड राज्य स्थापना के रजतोत्सव पर आयोजित इस विशेष सत्र में माननीय राष्ट्रपति का मार्गदर्शन हम सबको प्राप्त हो रहा है। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष, समर्पण और राष्ट्रसेवा का अनुपम उदाहरण है। उनके व्यक्तित्व में मातृत्व की ममता, सेवा का संकल्प और राष्ट्र के प्रति अटूट समर्पण का अद्भुत संगम निहित है। उन्होंने सदैव अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के कल्याण को प्राथमिकता देते हुए समाज के वंचित, शोषित एवं पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण हेतु कार्य किया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जी ने निजी जीवन में अत्यंत विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी हमेशा राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से कार्य करते हुए समाज जीवन में अपना योगदान दिया। झारखंड की राज्यपाल के रूप में भगवान बिरसा मुंडा के आदर्शों का अनुसरण करते हुए उन्होंने जनजातीय समाज के उत्थान में अविस्मरणीय भूमिका निभाई। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह दूसरा मौका है कि जब उत्तराखंड की विधानसभा में हमारे देश के राष्ट्रपति का अभिभाषण हो रहा है, इससे पूर्व 18 मई 2015 को पूर्व राष्ट्रपति श्रद्धेय स्वर्गीय प्रणव मुखर्जी जी ने विधानसभा को संबोधित किया था।

इस मौके पर नेता विपक्ष यशपाल आर्य ने राष्ट्रपति का स्वागत करते हुए कहा कि उत्तराखंड सभी मानकों में विशिष्ट प्रदेश है, उत्तराखंड की सीमाएं तिब्बत और नेपाल से मिलती हैं इस तरह ये हिमालयी राज्य देश की रक्षा में अडिग खड़ा है। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने इस राज्य को परोपकारी हिमालय से निकलने वाली सदानीरा नदियां दी है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की महिलाओं ने हमेशा राज्य के जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए संघर्ष किया है। विश्व प्रसिद्ध चिपको आंदोलन इसका उदाहरण है। उन्होंने उम्मीद जताई कि राष्ट्रपति के संबोधन से सदस्यों को नई ऊर्जा और दिशा प्राप्त होगी।

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