उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ऑल वेदर रोड चौड़ी करने की सरकार की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है। अदालत ने केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग मार्ग मंत्रालय को निर्देश दिए कि परियोजना की बाकी बची हुई सड़क का निर्माण मंत्रालय के ही वर्ष 2018 के सर्कुलर के हिसाब से हो। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला हिमालयी पहाड़ियों के लिए बेहद अहम है। पहाड़ काटने से उत्तराखंड में जगह-जगह भूस्खलन के मामले बढ़ गए हैं। चारधाम परियोजना का तकरीबन 75 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। जिसमें 8 मीटर की जगह, 12 मीटर चौड़ी सड़क बनाई गई। जिसके लिए ज्यादा पहाड़ काटने पड़े। ज्यादा मलबा निकला।
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याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने अदालत में कहा कि चारधाम परियोजना में केंद्रीय सड़क-परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के वर्ष 2012 के सर्कुलर को लागू किया गया। नतीजतन पहाड़ों को अवैध तरीके से काटा गया। जिससे हिमालय को भारी नुकसान हुआ। उन्होंने अदालत में ये भी कहा कि आठ मीटर से ज्यादा काटी गई सड़क के अतिरिक्त क्षेत्र में पौधरोपण किया जा सकता है। अदालत ने इस बात को भी अपने रिकॉर्ड में लिया है।
चारधाम सड़क परियोजना को लेकर बनाई गई हाई पावर कमेटी ने सड़क के निर्माण और उसके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर अदालत में रिपोर्ट सौंपी थी। कमेटी के 14 सदस्यों ने (जिसमें ज्यादातर सरकारी पदों पर या सरकार से मिलने वाले लाभ पर आधारित संस्थाएं थीं) 12 मीटर चौड़ी सड़क ही बनाने की सिफारिश की थी। जबकि कमेटी के चेयरमैन रवि चोपड़ा समेत पांच लोगों ने वर्ष 2018 के सर्कुलर के मुताबिक 8 मीटर चौड़ी सड़क बनाने का सुझाव दिया था। यानी हाई पावर कमेटी के 14 लोगों का सुझाव था कि 12 मीटर चौड़ी सडक बने और पांच लोगों का सुझाव था कि सड़क की चौड़ाई इंटरमीडिएट यानी 8 मीटर चौड़ी होनी चाहिए। अदालत ने पांच लोगों के अल्पसंख्यक धड़े के सुझाव को स्वीकार किया।
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केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने वर्ष 2018 में एक सर्कुलर जारी किया था। ये सर्कुलर वर्ष 2012 में सड़कों को लेकर तय किए गए मानकों में संशोधन को लेकर था। उस समय पहाड़-मैदान को एक जैसा ट्रीट करते हुए दो लेन वाले सड़क की चौड़ाई 12 मीटर तय की गई। इसमें 8 से 8.5 मीटर सड़क की चौड़ाई होती, साथ ही सड़क के दोनों छोर पर ड्रेनेज और पैदल चलने वालों के लिए जगह। 2018 में जारी सर्कुलर में कहा गया कि 2012 में सड़कों को लेकर तय किए गए नेशनल स्टैंडर्ड का पहाड़ों में खराब अनुभव हुआ। उससे बहुत चुनौतियां पैदा हुईं।
पहाड़ के ढलान इससे अस्थिर हुए। बड़ी संख्या में अनमोल पेड़ काटने पड़े जो सीधे तौर पर पर्यावरण के नुकसान से जुड़े हुए थे। इसके लिए ज्यादा ज़मीन का अधिग्रहण करना पड़ा। इसलिए 23 मार्च 2018 के सर्कुलर में कहा गया कि अब पर्वतीय क्षेत्रों में जो भी सड़कें बनेंगी वो इंटरमीडिएट चौड़ाई की होंगी। यानी 5-5.5 मीटर चौड़ी सड़क और उसके दोनों छोर पर एक-डेढ़ मीटर जगह पैदल चलने वालों के लिए, पानी की निकासी के लिए, पैरापिट लगाने के लिए छोड़ी जाएगी। इस तरह कुल चौड़ाई 8 मीटर से अधिक नहीं होगी।