देहरादून : 200 करोड़ रुपये के सालाना घाटे में चल रहा उत्तराखंड परिवहन निगम हर साल 25 लाख रुपये पानी में बहा रहा है। निगम को सालाना घाटा तो मंजूर है, मगर इस घाटे से उबरने के उपायों पर कदम बढ़ाने से परहेज है।
वर्ष 2003 में जब आइएसबीटी बना तो तय हो गया था कि कार्यशाला भी नजदीक ट्रांसपोर्टनगर में बनाई जाएगी। इसके बावजूद करीब 16 साल बीतने के बाद भी कार्यशाला जहां की तहां है। केवल इसी कारण सालाना 25 लाख रुपये का घाटा हो रहा है।
परिवहन निगम की कार्यशाला वर्तमान में हरिद्वार रोड पर संचालित हो रही है। यहां से आइएसबीटी करीब सात किलोमीटर दूर है। लिहाजा रोजाना 200 बसें आइएसबीटी से कार्यशाला आने-जाने की दूरी तय करती हैं। इनमें पर्वतीय डिपो, बी डिपो, ग्रामीण व जेएनएनयूआरएम डिपो की बसें शामिल हैं।
औसत पंद्रह किमी प्रति बस के हिसाब से रोजाना 200 बसें तीन हजार किमी चल रही हैं। ये दूरी तय करने पर डीजल का सालाना खर्च 20 लाख रुपये आ रहा। यही नहीं जो नियमित चालक-परिचालक हैं, उन्हें ये दूरी तय करने के लिए आधा घंटे के ओवरटाइम भत्ते के रूप में वेतन के साथ धनराशि और विशेष श्रेणी के चालक-परिचालकों को 18 रुपये दिए जाते हैं।
परिवहन निगम सूत्रों के मुताबिक, यह राशि करीब पांच लाख रुपये सालाना बैठती है। ऐसे में 25 लाख रुपये सालाना खर्च हो रहे हैं। अब अगर ट्रांसपोर्टनगर में बनने वाली कार्यशाला की तरफ नजर दौड़ाएं तो यहां निगम की कुल 45 बीघा जमीन है।
इसमें 40 बीघा सड़क के एक तरफ है व बाकी पांच बीघा ठीक सामने वाली तरफ। पिछले 16 साल में परिवहन निगम यहां सिर्फ गेट लगाने, बाउंड्रीवॉल बनाने व फर्श डालने का काम करा सका है। पिछले साल किसी ने गेट तोड़ जमीन पर अवैध कब्जा भी कर लिया, तब जाकर निगम ने यह कब्जा मुक्त कराया और एक कमरे का निर्माण कराया।
कार्यशाला का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि बसें शहर में नहीं आएंगी व बस अड्डे से यह महज एक किमी दूरी पर ह। इससे निगम को डीजल और कर्मियों को दिए जा रहे ओवरटाइम भत्ते की बचत भी होगी।
पांच करोड़ की आएगी लागत
ट्रांसपोर्टनगर में कार्यशाला निर्माण कराने और हरिद्वार रोड से शिफ्ट करने की लागत करीब पांच करोड़ रुपये आंकी गई है। इस कार्यशाला में बी डिपो व ग्रामीण डिपो को शिफ्ट किया जाएगा, जबकि बाकी दो डिपो पुरानी कार्यशाला में ही चलेंगे।
बाहर से डीजल का खेल
कार्यशाला शिफ्ट न होने की एक वजह बाहर से डीजल खरीदने में हो रहा खेल भी है। दरअसल, पहले रोडवेज की सभी बसें अपने डिपो के बजाए बाहर से डीजल ले रही थी, लेकिन दो साल पूर्व मुख्यमंत्री ने आदेश दिए थे कि बसें अपने परिवहन निगम के डिपो से ही डीजल लें। इस पर रोडवेज अपनी बसों को तो डिपो से डीजल दे रहा लेकिन अनुबंधित बसों में अभी भी बाहर से डीजल भरा जा रहा है।
बजट के कारण अटका है निर्माण
उत्तराखंड परिवहन निगम के महाप्रबंधक (संचालन) दीपक जैन के मुताबिक, कार्यशाला निर्माण का प्रस्ताव बना हुआ है। करीब पांच करोड़ रुपये की लागत इस पर आनी है लेकिन बजट का रोड़ा अटका हुआ है। निगम को अपने खर्च पर इसका निर्माण कराना है। इसलिए कुछ समय लग रहा है।