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उत्तराखंड : वन विभाग में 1.59 करोड़ रुपये का घोटाला, जांच में हुआ खुलासा

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देहरादून : हरिद्वार वन प्रभाग की रसियाबड़ रेंज में बिना टेंडर और कोटेशन के किए गए 1.59 करोड़ रुपये के कार्यों का नकद भुगतान विशुद्ध घोटाला है। दैनिक जागरण ने 26 फरवरी 2019 के अंक में इस प्रकरण को प्रमुखता से प्रकाशित किया था और इसके बाद कराई गई जांच में भी अब यही पाया गया है कि भुगतान नियमों को ताक पर रखकर किए गए हैं। उप प्रभागीय वनाधिकारी (एसडीओ) कालसी की यह जांच रिपोर्ट वन मुख्यालय को भेज दी गई है।

आरटीआइ में प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर जागरण ने बताया था कि किस तरह वर्ष 2015-16 से वर्ष 2017-18 के बीच हरिद्वार वन प्रभाग में एक करोड़ 59 लाख रुपये से अधिक का नकद भुगतान कर दिया गया। इसमें विभिन्न खरीद से लेकर श्रमिकों को किया गया भुगतान तक शामिल है। कैंपा मद में वन्यजीव सुरक्षा के विभिन्न कार्यों के लिए श्रमिकों को 11 लाख 40 हजार रुपये का नकद भुगतान दिखाया गया है, जबकि काम के प्रमाणकों पर किसी भी फील्ड अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं हैं।

यानि, श्रमिकों के कार्य की पुष्टि नहीं हो पाई। यहां तक कि श्रमिकों ने किन क्षेत्रों में काम किया, इसका भी कहीं उल्लेख नहीं है और श्रमिकों के पते भी नहीं दिए गए हैं। श्रमिकों को मानकों के विपरीत प्रतिमाह 10 हजार रुपये का भुगतान भी होना दिखाया गया है, जबकि इन्हें दैनिक आधार पर भुगतान किया जाना चाहिए था।

इसके अलावा बिना किसी टेंडर या कोटेशन के रेंजर ने एक साल के लिए बोलेरो कार 30 हजार रुपये मासिक किराये पर ले ली। देहरादून के जिस अजबपुर कलां स्थित नागराजा टूर एंड ट्रेवलर्स से वाहन लिया गया, उसके जीएसटी व टिन नंबर का भी उल्लेख नहीं है। यहां तक कि वाहन किराये पर लेने की सेवा-शर्तों का भी उल्लेख नहीं किया गया।

इसी तरह वर्ष 2017 के वर्षाकाल में विभिन्न प्रजाति के पौधों की खरीद पर 4.69 लाख रुपये से अधिक का नकद भुगतान किया गया। यह खरीद छुटमलपुर (सहारनपुर) की शिव नर्सरी से दिखाई गई है और इसमें भी टेंडर प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। पौधों के ढुलान में भी नकद में 29 हजार 820 रुपये खर्च किए गए। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता था कि पौधों की खरीद की ही नहीं की गई, क्योंकि खरीद का उल्लेख किसी पंजिका में नहीं पाया गया।

आरटीआइ में खरीद का जो रिकॉर्ड दिया गया, उस पर पृष्ठ संख्या अंकित नहीं मिली। हरिद्वार वन प्रभाग की इस रेंज में ऐसे ही तमाम नकद भुगतान मानकों को ताक पर रखकर कर दिए गए। जिससे फर्जी बिलों के आधार पर बिना कार्यों व खरीद के सरकारी धनराशि के गबन से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।

अब इस प्रकरण में की गई जांच में भी जांच अधिकारी ने पाया है कि भुगतान में नियमों का पालन नहीं किया गया। जांच के लिए उन्होंने रसियाबड़ के रेंजर से बिंदुवार जवाब मांगे थे और फिर अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि कई भुगतान पर रेंजर ने भी त्रुटि किए जाने की बात स्वीकार की है।

2015 में बंद कर दिया था नकद भुगतान, रेंजर ने नियम रखे ताक पर

वन एवं पर्यावरण अनुभाग-दो के 15 मई 2015 में जारी आदेश के मुताबिक विभाग में नकद भुगतान पर रोक लगा दी गई थी। शासनादेश में स्पष्ट किया गया था कि वन क्षेत्राधिकारी राष्ट्रीयकृत बैंकों में खाता खोलकर धनराशि का वितरण बैंक ट्रांसफर या चेक के माध्यम से करेंगे। बावजूद इसके अधिकारियों ने इतने बड़े गोलमाल को अंजाम दे दिया

इन कार्यों का भी नकद भुगतान

-कैंपा मद से हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी स्थित हाजी बिंदु हसन अंसारी फर्नीचर हाउस से ईंट, लकड़ी, आरबीएम, रोड़ी, लोहे की रेलिंग आदि की खरीद में 9.54 लाख रुपये का एकमुश्त भुगतान फरवरी-मार्च 2017 में किया।

-कैंपा मद में लंबी-छोटी दूरी की गश्त पर भोजन व्यवस्था में लखेड़ा टेंट हाउस, हरिद्वार को मार्च 2018 में दो लाख रुपये का भुगतान किया गया। यह गश्त कहां की गई, इसका भी उल्लेख नहीं है और फील्ड कर्मियों के भी दस्तावेजों में हस्ताक्षर नहीं मिले।

-उत्तराखंड वृक्षारोपण संहिता के विपरीत अनाधिकृत फर्म से 96 हजार 250 रुपये के बीज खरीदे।

विजिलेंस को भेजी गई शिकायत

आरटीआइ कार्यकर्ता ने जांच रिपोर्ट को अपर मुख्य सचिव, सतर्कता (विजिलेंस) को भेजी है। शिकायत में उन्होंने सरकारी धन के गबन का आरोप लगाते हुए संबंधित रेंजर की संपत्ति की जांच कराने की मांग की है।