देश का सबसे बड़ा ग्लेशियर गंगोत्री यहीं है तो वनाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं इसी राज्य का हिस्सा हैं। मतलब यह राज्य देश में अपनी अलौकिक प्रकृति और पारिस्थितिकी का केंद्र है। इन सबके बावजूद कहीं पर्यावरण की दृष्टि से सब कुछ ठीक नहीं है। यहां भी प्रकृति को जोड़कर विकास की शैली नहीं अपनाई गई है। सड़कों और बांधों को अगर प्रभु के बाद परम आवश्यक मान लिया जाए तो कुछ समझौतों का रास्ता भी खोजा जा सकता था। मसलन बांधों की कतार के साथ छोटे-छोटे स्तर के जल उत्पादन केंद्र स्थापित होंगे तो स्थानीय नियंत्रण तो पड़ेगा ही पर साथ में पारिस्थितिकी पर हमला होगा। हम छोटे-छोटे प्रयोगों के पक्ष में नहीं रहते जो स्थायी भी होते हैं और पारिस्थितिकी पर बोझ नहीं बनते।
सड़कों को ही देखिये अब सारी दुनिया में सड़कें हमारे यहां ही नहीं बनती, दूसरे देशों में पहाड़ों में सड़क और संवर्धन को जोड़कर देखा जाता है। मतलब सड़क बनाने के साथ साथ जल, जंगल का विशेष ख्याल रखा जाता है। इतना ही नहीं दुनिया में विकास की अब एक नई शैली तय की जा रही है जो विकास के नए आयाम तय कर रही है। जहां वे एक तरफ बड़े बांधों से मुक्त होंगे, वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा जुटाने में जुटे हैं। सजग समाज समय पर सही निर्णय ले लेता है। उदाहरण के लिए विकसित देश कई तरह की ऐसी विकास योजनाओं में जुटे हैं, जिनसे प्रदूषण न हो। स्वच्छता इन देशों का मूलमंत्र है वह चाहे घर की सड़क हो या शहर की। उस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। हम पश्चिमी शैली के इस पहलू से पूरी तरह दूर हैं और विकास की उस लीक से जुड़ रहे हैं जो विनाश के मार्ग पर ले जा रही है।