शिशुओं को सही देखभाल और पोषण की ज्यादा जरूरत होती है। पर एक नवजात बच्चे के साथ परेशानी ये होती है कि वे शुरू से ही हर चीज को लेकर बहुत सेंसिटिव होते हैं। ऐसे में सही टाइम से फीडिंग के साथ उनके मल-मूत्र का भी खास ख्याल रखना पड़ता है। पहले वर्ष में, उनके पोषण का एक प्रमुख स्रोत माँ के दूध से आता है, जो उन्हें स्वस्थ और खुश रखता है। वहीं जैसे-जैसे वे बढ़ते रहते हैं, उनके शरीर का वजन बढ़ता-घटता रहता है। यह हमेशा आवश्यक नहीं होता है कि उनके शरीर का वजन उनके स्वस्थ होने का संकेत हो। वहीं इन्हें भी पेट और पाचान से जुड़ी कई परेशानियां भी हो सकती हैं। इसी तरह शिशु भी डिहाइड्रेशन का शिकार हो सकते हैं। पर शिशुओं में डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी को समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है। पर अगर आप शिशुओं में डिहाइड्रेशन के संकेतों के बारे में जान लें, तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि आपका शिशु डिहाइड्रेट है या नहीं। आइए हम आपको बताते हैं इन संकेतों के बारे में।
शिशुओं में डिहाइड्रेशन के 5 संकेत
मुंह और स्किन का ड्राई लगना
नए मां-बाप के लिए अपने बच्चे को समझना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में उन्हें लग सकता है कि उनका बच्चा ठीक है, पर जरूरी नहीं कि ऐसा हो। पर बच्चे में पानी का कमी को समझने के लिए वे सबसे पहले उसके मुंह को देखे। ध्यान से चेक करें कि क्या उसके होंठ बार-बार सूख रहें है। साथ ही क्या उसका स्किन ड्राई है। जीभ का रंग और लार को देखकर कर भी मां-बाप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि कहीं उनका बच्चा प्यासा तो नहीं। या उसे कहीं पानी की कमी तो नहीं हो रही। इसके अलावा मुंह, होंठ और चेहरे के अंदर और आसपास सूखापन उनकी त्वचा को छिलने का कारण भी बन सकता है। डिहाइड्रेशन के कारण उनके हाथ और पैरों का तापमान सामान्य से अधिक या कम हो सकता है। यानी कि बहुत ज्यादा गर्म और ठंडा हो सकता है। इस संकेत को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
बिना आंसू के रोना
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे रोना शुरू करते हैं और आंसू बहाते हैं। आंसू के बिना रोना आमतौर पर तब होता है जब शरीर पानी में पानी की कमी हो जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर में पानी की कमी से आंसू का उत्पादन नहीं होता है और बच्चा बिना आंसू के रो सकता है। ऐसे में कोशिश करें कि बच्चे को दूध और पानी पिलाएं और इसके साथ ही उनके पोषण का अच्छे से ध्यान दें। अगर बच्चा 6 महीने का हो गया है और तब उसके साथ ऐसा हुआ है तो बच्चे को ज्यादा से ज्यादा लिक्वीड चीजों को देने की कोशिश करें।
बच्चे के डायपर का सूखा रहना
यदि आप एक नए माता-पिता हैं, तो संभावना है कि आप पहले से ही बच्चे के शौचालय की आदतों से परिचित नहीं हैं। पर वक्त के साथ आप धारे-धारे परिचित हो सकते हैं। ऐसे में पहले छह महीनों में, एक दिन में 5-6 डायपर परिवर्तन सामान्य माना जाता है। हालांकि, यदि आप इसमें कुछ कमी और ज्यादा में बदलाव पर ध्यान देते हैं तो आप समझ जाएंगे कि आपका बच्चा ठीक है या नहीं। अगर आपके बच्चे में मल-मूत्र में बदलाव आया है या कमी हुई है तो समझिए उसे पानी की कमी हुई है। ऐसा भी हो सकता है कि आपके बच्चे को पर्याप्त भोजन न मिल रहा हो और इसी कारण से उसे टॉयलेट न आ रही हो। वहीं आप बच्चे के मूत्र के रंग को देखकर भी इस बात का पता लगा सकते हैं। आमतौर पर डिहाइड्रेशन के कारण मूत्र गहरे पीले रंग का हो सकता है, जो सामान्य नहीं है।
सुस्त और बहुत ज्यादा सोना
वयस्कों की तरह, जब शिशुओं को उचित पोषण नहीं मिलता है, तो वे अधिक थक जाते हैं और सामान्य से अधिक सुस्त लगते हैं। डिहाइड्रेशन के कारण आपका बच्चा बार-बार सो भी सकता है। इसलिए जरूरी है कि आप अपने बच्चे की नींद की दिनचर्या पर नजर रखें। सुस्त और अधिक सोना सबसे अधिक बार नजरअंदाज किए गए डिहाइड्रेशन के संकेतों में से एक है। इसलिए इसका खास ख्याल रखें।
अधिक चिड़चिड़ा और कर्कश हो जाना
यदि आपका बच्चा भूखा है या उसमें पानी की कमी हो गई है, तो वह अधिक चिड़चिड़ा, कर्कश और उधम मचा सकता है। वो रह रह कर रो सकता है और आपको परेशान कर सकता है। आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ बच्चे रोते ही रहते हैं इतना कि आपको समझ न आए कि आज हुआ क्या है। ऐसे में हो सकता है कि उसे कोई परेशानी हो या वो बीमार हो। यही कारण है कि बच्चे के रोने को शांत करने के तरीकों में से फिड करना एक आसान उपाय माना जाता है। हालांकि, बच्चे बहुत अधिक कारणों से भी बच्चे चिड़चिड़ा और कर्कश सकते हैं, इसलिए आप अकेले इस कारण पर निर्भर नहीं हो सकते।