विधानसभा में उत्तराखंड पंचायतीराज संशोधन अधिनियम 2019 बुधवार को पारित हो गया। इसी के साथ दो से अधिक जीवित बच्चों वाले लोगों पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव लड़ने की रोक लगने का रास्ता साफ हो गया। चूंकि इस अध्यादेश में तीसरी संतान पैदा होने की समय सीमा तय नहीं की गई है। इस वजह से हजारों प्रत्याशी पंचायत चुनाव की दौड़ से बाहर हो गए हैं। त्रिवेंद्र रावत सरकार ने मंगलवार को ही संशोधन विधेयक सदन में पेश किया था। इसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि दो से अधिक बच्चों की शर्त ऐक्ट लागू होने के तीन सौ दिन बाद से तय होगी। लेकिन, बुधवार को भाजपा विधायक केदार सिंह रावत ने तीन सौ दिन की समय सीमा समाप्त करने का संशोधन प्रस्तुत करते हुए, इसे तत्काल प्रभाव से लागू किए जाने की मांग उठाई, जिसे सदन में शोरगुल के बीच बिना चर्चा पारित किया गया। इस तरह समयसीमा का प्रावधान खत्म होने के साथ यह अधिनियम दो से अधिक बच्चों वाले सभी लोगों पर पंचायत चुनाव लड़ने की रोक लगाता है। बड़ी संख्या में मौजूदा समय के पंचायत प्रतिनिधि अब अगला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इससे पूरे उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत राजनीति में खलबली मचने के आसार दिख रहे हैं।
शैक्षिक योग्यता में भी बदलाव: नए अधिनियम के तहत सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए पंचायत में किसी भी स्तर का चुनाव लड़ने के लिए दसवीं पास होना अनिवार्य हो गया है, जबकि महिला और एससी-एसटी वर्ग के लिए शैक्षिक योग्यता आठवीं रखी गई है। पहले एससी महिला और एसटी महिला प्रत्याशियों के लिए पांचवीं पास योग्यता रखी गई थी, मगर विधायक केदार रावत के संशोधन प्रस्ताव पर एससी-एसटी महिलाओं के लिए भी शैक्षिक योग्यता आठवीं कर दी गई है। इस अधिनियम में ओबीसी वर्ग का उल्लेख नहीं होने पर उन्हें सामान्य के बराबर शैक्षिक योग्यता पूरी करनी होगी।
पंचायतीराज संशोधन विधेयक में कुछ बिंदुओं पर विचार की गुंजाइश है तो इस पर संबंधित विभाग और विधायी से चर्चा की जाएगी। राज्य सरकार की प्राथमिकता सभी पंचायतों को हर तरह से मजबूत बनाने की है। इसके प्रयास किए जा रहे हैं।
मदन कौशिक, संसदीय कार्य एवं शहरी विकास मंत्री
राज्य में पंचायत प्रतिनिधि
ग्राम पंचायत सदस्य : 50,824
ग्राम पंचायत : 7,762
क्षेत्र पंचायत : 3,112
जिला पंचायत : 414