
बीते 29 जनवरी को नैनीताल की सबसे ऊंची चोटी चाइना पीक में बारिश व बर्फबारी के बाद भूस्खलन हो गया था।जिसके बाद प्रशासन और भू-वैज्ञानिकों की एक टीम ने क्षेत्र का निरीक्षण किया था। रविवार को चाइना पीक में फिर भू-स्खलन हुआ जिससे वार्ड नंबर 12 के लोगों में दहशत फैल गई। रविवार को चाइना पीक की पहाड़ी से पत्थर गिरने के कारण धूल का गुबार नजर आया। पत्थरों के गिरने की आवाज से लोगों में दहशत है।
हालांकि पहाड़ी पर काफी संख्या में पेड़ होने की वजह से मलबा रोड तक नही पहुंच रहा है, पर भू-स्खलन के कारण लोगों में डर बना हुआ है। क्षेत्र के वार्ड मेंबर दया सुयाल से स्थानीय लोगों ने मामले को तुरंत संज्ञान में लेकर इलाके की देख रेख की मांग की है। पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत का कहना है कि बारिश के दौरान पहाड़ी पानी को सोख लेती है और धूप पड़ने के बाद पहाड़ी दरकने लगती है।
गौरतलब है कि नैनीताल की ये चोटी समुद्र तल से लगभग 2084 मी (6,837) फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है, जहा से नैनीताल की प्रसिद्ध झील आम के आकार की दिखाई देती है, इसीलिए नैनी झील को मैंगो शेप झील भी कहा जाता है। चायना पीक 90 डिग्री पर बिल्कुल सीधी पहाड़ी है। 90 के दशक में इस चायना पीक से एक हिस्सा नीचे आ गिरा था जिससे पंत सदन, गैस गोदाम, हाइकोर्ट, स्विस होटल, शेरवानी हिल टॉप इत्यादि भवन काफी प्रभावित हो गए थे। एक बार फिर हो रहे इस भूस्खलन की वजह से आसपास के सभी क्षेत्र और उत्तराखंड हाइकोर्ट खतरे की ज़द में आ गए हैं।
इस क्षेत्र में 90 के दशक के बाद सुरक्षा दीवारें बनवाई गई, और वृक्षारोपण भी किया गया ताकि भूस्खलन को रोका जा सके लेकिन पिछले 15 – 20 सालों में इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मकान बना दिये गए हैं, इतना ही नही हांडी बांडी से लेकर सैनिक स्कूल तक कंस्ट्रक्शन का इतना ज़्यादा काम किया गया कि चायना पीक की जड़ ही हिलने लगी है।जिससे चायना पीक के नीचे का क्षेत्र अब भी खतरे की ज़द में है।