हरीश रावत ने 1980 में पहली बार अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज करते हुए संसदीय राजनीति का आगाज किया था। इसके बाद 1984 व 1989 में भी हरीश रावत इसी सीट से सांसद बने। 2002 से 2008 तक राज्यसभा सांसद रहने के बाद 2009 में वो फिर लोकसभा चुनाव जीते। हालांकि, रावत ने यह चुनाव हरिद्वार सीट से जीता, लेकिन 2014 में उनकी पत्नी रेणुका रावत हरिद्वार सीट से हार गईं।
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के छोटे से गांव में जन्म लेने वाले हरीश रावत आज सूबे में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं। अपने राजनीतिक करियर में हरीश रावत ने केंद्र सरकार में मंत्री से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तक की जिम्मेदारी संभाली है। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत को बड़ा झटका लगा था, जब वो उत्तराखंड की दो सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद विधानसभा नहीं पहुंच पाए थे। यही वजह है कि हरीश रावत अब नैनीताल-उद्धमसिंह नगर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं, जहां उनका मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के अजय भट्ट से है।
हालांकि, दिलचस्प बात ये है कि हरीश रावत की तरह ही अजय भट्ट भी विधानसभा चुनाव में अपनी रानीखेत सीट नहीं बचा पाए थे, जबकि पूरे राज्य में बीजेपी की लहर चली थी और पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही थी। अब जबकि वो प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं तो पार्टी नेतृत्व ने उन्हें हरीश रावत के सामने लोकसभा की लड़ाई के लिए उतार दिया है, जो उनके लिए बड़ी चुनौती नजर आ रहा है।
नैनीताल का जातिगत समीकरण
इसकी वजह नैनीताल लोकसभा सीट का जातिगत समीकरण है। हरीश रावत एक बड़े नेता होने के साथ जिस क्षत्रिय समाज से आते हैं, मतदाता संख्या के लिहाज से वो नैनीताल लोकसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा वर्ग है। इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 18 लाख वोटर हैं, इनमें करीब 18 फीसदी क्षत्रिय, करीब 15 फीसदी ब्राह्मण, 19 फीसदी अनुसूचित जाति व जनजाति, मुस्लिम व अन्य अल्पसंख्यक समेत करीब 32 फीसदी और 16 फीसदी अन्य जातियों से ताल्लुक रखने वाले मतदाता हैं।
नैनीताल सीट से बीजेपी प्रत्याशी अजय भट्ट
अजय भट्ट ब्राह्मण समाज से आते हैं। साथ ही वो अपने गृहनगर रानीखेत सीट से चुनाव हार गए थे। अजय भट्ट का व्यक्तिगत तौर पर जनता के बीच संवाद न होना भी उनकी कमजोरी माना जाता है। जबकि दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी भी परेशानी का सबब बन सकता है।
बसपा ने भी राजेश दुबे के रूप में एक ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारा है. बसपा सुप्रीमो मायावती रुद्रपुर में रैली कर अपने प्रत्याशी के लिए समर्थन भी मांग चुकी हैं. उन्होंने यहां दलित वर्ग को ध्यान में रखते हुए आरक्षण का मुद्दा उठाया था। दलित-ब्राह्मण का ये गठजोड़ भी अजय भट्ट के लिए नकारात्मक साबित हो सकता है। 2014 के चुनाव में बसपा प्रत्याशी लईक अहमद को 59 हजार वोट मिले थे।
हालांकि, अजय भट्ट के समर्थन में पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व तमाम दूसरे बड़े नेता रैली कर चुके हैं, जबकि हरीश रावत अकेले ही बिना शीर्ष नेतृत्व के जनता के बीच जा रहे हैं, जो अजय भट्ट के पक्ष में माना जाना रहा है। इस सबके बावजूद नैनीताल सीट का इतिहास और हरीश रावत का कद अजय भट्ट के बजाय हरीश रावत की मजबूती के तौर पर देखा जा रहा है।
चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत
ग्राम पंचायत से राजनीति का आगाज
हरीश रावत ने अल्मोड़ा के अपने गांव से अपनी राजनीति का आगाज किया था। ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी संभालते हुए हरीश रावत ने 1973 में यूथ कांग्रेस के जिलाध्यक्ष का कार्यभार संभाला और इस तरह शुरुआती जीवन से ही वो कांग्रेस से जुड़ गए।
साल 1980 से हरीश रावत कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं और फिलहाल वो संगठन में महासचिव हैं। रावत की चुनावी राजनीति भी काफी पुरानी है। उत्तराखंड जब यूपी का हिस्सा था, 1980 में उन्होंने पहली बार अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता।
अल्मोड़ा व हरिद्वार से संसद पहुंचते रहे हैं हरीश रावत
इसके बाद 1984 व 1989 में भी हरीश रावत इसी सीट से सांसद बने। 2002 से 2008 तक राज्यसभा सांसद रहने के बाद 2009 में वो फिर लोकसभा चुनाव जीते।हालांकि, रावत ने यह चुनाव हरिद्वार सीट से जीता, लेकिन 2014 में उनकी पत्नी रेणुका रावत यह सीट हार गईं। हालांकि, 2016 में हरीश रावत को विजय बहुगुणा की जगह उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन 2017 में हरीश रावत भी हरिद्वार सीट से विधानसभा चुनाव हार गए।
चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत
अब लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर नैनीताल का रुख किया है, जहां आजादी के बाद से बीजेपी तीन बार (1991, 1998 व 2014) बार जीती है। 1957 में नैनीताल सीट पर हुए पहले चुनाव से लेकर अब तक 6 बार ही कांग्रेस के अलावा कोई पार्टी जीत पाई है। 1999 से लगातार चार बार जीत दर्ज के बाद कांग्रेस को 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने झटका दिया था, जिन्होंने 6,36,769 वोट हासिल करते हुए कांग्रेस के करण चंद सिंह बाबा (3,52,052) को पौने तीन लाख से ज्यादा मतों से हराया था। लेकिन पार्टी ने इस बार उनका टिकट काटकर अजय भट्ट को मौका दिया है, जिनका मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत से है और इस सीट पर पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को मतदान होना है।