आज की इस भागदौड़ भरी और तनावयुक्त जीवनशैली की वजह से मनुष्य का सबसे अधिक कुप्रभावित अंग हृदय है। यही कारण है कि आज हृदय संबंधी समस्याएं छोटे-छोटे बच्चों, युवाओं तक को अपनी चपेट में ले रही हैं। हृदय संबंधी समस्याएं जैसे उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, हृदय शूल, हृदय की धड़कन का असामान्य होना, हृदय की वॉल्व संबंधी समस्याएं, हृदय की मांसपेशियों का कमजोर होना आदि आज बेतहाशा बढ़ रही हैं। इनका कारण आनुवंशिक भी हो सकता है, किन्तु इनका प्रतिशत कम है। इसका मूल कारण मानसिक तथा भावनात्मक असंतुलन है। आधुनिक पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान हृदयाघात जैसी समस्याओं के तात्कालिक निदान में मदद कर जीवन की रक्षा करता है, किन्तु वह इसके मूल कारणों को दूर नहीं करता। योग ही एकमात्र ऐसा उपाय है, जो मानसिक तथा भावनात्मक असंतुलन का स्थायी निदान प्रस्तुत करता है। योग उनके लिए भी लाभप्रद है, जो किसी भी तरह के हृदय रोग से पीड़ित हैं। इसके लिए नाड़ी शोधन प्राणायाम काफी लाभदायक साबित होता है। इस योगासन को अनुलोम विलोम प्राणायाम के रूप में भी जाना जाता है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम की अभ्यास विधि
पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर स्थिरतापूर्वक रख लें। अब अपने दाएं हाथ को उठाकर इसके अंगूठे को दाईं नासिका तथा अनामिका को बाईं नासिका पर रखें। तर्जनी तथा माध्यमिका अंगुलियों को माथे पर या हथेलियों की ओर मोड़ लें। कनिष्ठिका अंगुली को सीधा छोड़ दें। इसके पश्चात बाईं नासिका से एक लम्बी, धीमी तथा गहरी श्वास अंदर लें। पूरी श्वास भर लेने के बाद बाईं नासिका को बंद कर दाईं नासिका से लम्बी गहरी तथा धीमी प्रश्वास बाहर(रेचक) निकालें। रेचक के तुरंत बाद दाईं नासिका से पूरक तथा बाईं नासिका से रेचक करें। यह नाड़ीशोधन प्राणायाम का एक चक्र है। प्रारम्भ में इसके छह चक्रों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे इसके चक्रों का अभ्यास छह के गुणांक में बढ़ाते जाना चाहिए।
आहार
सभी प्रकार के रोगों से बचने के लिए आहार नियमित तथा सात्विक रखें।