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मकर संक्रांति देश में विभिन्न रूपों में मनाया जाने वाला त्यौहार

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मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस पर्व को मनाया जाता है, ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते हैं। चूँकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
जनवरी माह की 14-15 तारीख को यह त्यौहार विभिन्न रूपों में देश के हर हिस्से में मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इसे खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महात्म्य है. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिउड़ा, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने की परंपरा है।

उत्तराखंड में मकर संक्रांति का त्यौहार घुघूती त्यौहार के नाम से मनाया जाता है, यह दिन सभी शुभ कार्यो की शुरुआत करने के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।ये त्यौहार सिर्फ एक पर्व ही नहीं है बल्कि उत्तराखंड का एक लोक उत्सव भी है।इस दिन विशेष प्रकार के व्यंजन घुघुती हर घर में बनाये जाते हैं। कुमाऊँ में इस त्यौहार को घुघूतीबासूती के नाम से और गढ़वाल में खिचड़ी संक्रांति के नाम से मनाया जाता है।कुमाऊँ क्षेत्र में इस दिन घी शक्कर और आटे से मोड़ मोड़ के घुघुति बनाई जाती है। यहाँ इस मौके पर ढेरों मेलों का आयोजन किया जाता है, इनमें बागेश्वर और रानीबाग का उत्तरायणी मेला ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं।

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज इलाहाबाद एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है, हरिद्वार में भी इस दिन लाखों श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं।इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर भी हर साल मकर संक्राति में माघ मेले की शुरुआत होती है, माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होता है।

दक्षिण भारत के केरल में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं. प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद इस खीर को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बीहू के नाम से मनाते हैं।