केजरीवाल ने लगाई हैट्रिक, तो कांग्रेस फिर हुई शून्य पर आउट, बीजेपी दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाई।

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने हालाँकि औपचारिक तौर पर सारे नतीजों का एलान नहीं किया है मगर घोषित नतीजों और रुझानों के आधार पर लगभग तय है कि आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें अपने नाम कर ली हैं। बीजेपी के हिस्से में आठ सीटें आई हैं, और कांग्रेस लगातार दूसरी बार दिल्ली विधानसभा में अपना खाता नहीं खोल पाई है।
2015 के चुनाव में 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर की अटकलों को ख़ारिज करते हुए इस बार 62 सीटें अपने कब्ज़े में की हैं।
चुनाव जीतने के बाद अपने भाषण में केजरीवाल ने दिल्ली वालों आई लव यू कहते हुए सभी को जीत की बधाई दी। उन्होंने कहा, ये हर उस परिवार की जीत है, जिनको आज दिल्ली में 24 घंटे बिजली मिलने लगी है। ये हर उस परिवार की जीत है जिनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलने लगी है, ये हर उस परिवार की जीत है जिनके लोगों का दिल्ली के अस्पतालों में अच्छा इलाज होने लगा है। दिल्ली के लोगों ने आज देश में एक नई किस्म की राजनीति को जन्म दिया है, जिसका नाम है काम की राजनीति। ये एक नई किस्म की राजनीति की शुरुआत है, ये एक शुभसंकेत है, यही राजनीति हमें 21वीं सदी में ले जा सकती है।
वहीं बीजेपी नेता मनोज तिवारी ने दिल्ली के चुनावी नतीजों पर कहा, हम अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके, हम इसका मूल्यांकन करेंगे।जब हमारी उम्मीदों के मुताबिक़ नतीजे नहीं आते हैं तो हमें निराशा होती है लेकिन मैं अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहना चाहूंगा कि वो निराश न हों. साल 2015 की तुलना में हमारा वोट प्रतिशत बढ़ा है। वहीं बीजेपी की तरफ से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरविंद केजरीवाल को बधाई दी।
वहीं शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली की सत्ता पर लगातार 15 साल तक राज करने वाली कांग्रेस का आंकड़ा लगातार दूसरी बार भी शून्य रहा है। शीला दीक्षित की मृत्यु के बाद कांग्रेस आज भी किसी भरोसेमंद चेहरे की तलाश में संघर्ष करती हुई लग रही है। कांग्रेस का वोटबैंक आहिस्ता-आहिस्ता आम आदमी पार्टी के खेमे में शिफ़्ट हो गई और पार्टी नेताओं के मतभेद उभर कर सामने आने लगे।
दिल्ली चुनाव परिणामों पर पार्टी प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने नाराज़गी जताई, उन्होंने कहा हम एक बार फिर दिल्ली में सिमट कर रह गए हैं। आत्मावलोकन बहुत हुआ, अब कदम उठाने का वक़्त है। शीर्ष नेतृत्व के स्तर फ़ैसला लेने में बहुत ज़्यादा देरी, रणनीति और राज्य इकाई में एकता का अभाव, हतोत्साहित कार्यकर्ता, ज़मीन से कोई जुड़ाव नहीं, ये हमारी हार के कारण हैं। सिस्टम का हिस्सा होने की वजह से मैं हार की जिम्मेदारी लेती हूं।