अल्मोड़ा जनपद में जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर न्याय के देवता कहे जाने वाले गोलू देवता का मंदिर है स्थित है। इसे चितई ग्वेल भी कहा जाता है। मंदिर के अंदर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद वंश के एक सेनापति ने 12 वीं शताब्दी में करवाया था। उत्तराखण्ड़ हाईकोर्ट के आदेशानुसार अल्मोड़ा चितई गोलू देवता का मंदिर अब ट्रस्ट बन गया है। शनिवार को प्रशासन ने चितई गोलू मंदिर समिति का पंजीकरण कराया। इस समिति में जिलाधिकारी अल्मोड़ा अध्यक्ष, उपजिलाधिकारी सदर उपाध्यक्ष, मुख्य कोषाधिकारी अल्मोड़ा पदेन सदस्य, जिला पर्यटन विकास अधिकारी पदेन सदस्य, प्रबन्धक चितई मन्दिर समिति सदस्य, पुजारी प्रतिनिधि सदस्य और एक विशेष आमंत्रित सदस्य उक्त प्रबन्धन समिति के सदस्य होंगे। चितई गोलू मन्दिर समिति हेतु एक पुजारी को पुजारी प्रतिनिधि के रूप में चयन के लिए आज पुजारियों के साथ बैठक होगी।
ट्स्ट बनने के ये होंगे फायदे –
गोलू देवता मंदिर में लोगों की आस्था बनी रहे, इससे पारदर्शिता आएगी, मंदिर में आने वाले चढ़ावे पर प्रशासन की निगरानी रहेगी। मंदिर में आने वाले चढ़ावे पर प्रशासन की निगरानी रहेगी। मंदिर में आने वाले चढ़ावे से क्षेत्र में विकास होगा, कुछ लोगों को इससे रोजगार भी मिलेगा। मंदिर की व्यवस्थाओं में सुधार होगा। धार्मिक आयोजनों में पारदर्शिता आएगी, मंदिर का प्रचार-प्रसार और सुरक्षा की व्यवस्था ठोस होगी, यातायात व्यवस्था में सुधार होगा।
2018 में शुरु हुई ट्रस्ट बनाने की कवायद-
चितई गोलू मंदिर को ट्रस्ट बनाने की कवायद 2018 से शुरु हुई नैनीताल निवासी अधिवक्ता दीपक रूवाली ने वर्ष 2018 में चितई मंदिर को ट्रस्ट बनाने के लिए नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने कहा था गोलू देवता मंदिर हमारा आस्था का केन्द्र है। मंदिर की आस्था को बरकरार रखने के लिए उन्होंने कोर्ट में मंदिर को ट्रस्ट बनाने की मांग की थी। इस मामले में मार्च 2020 में कोर्ट ने चितई को ट्रस्ट बनाने का फैसला सुनाया था, इसके बाद प्रशासन ने ट्स्ट बनाने की कवायद शुरु की।
विरोध के सुर हुए तेज-
चितई गोलू मंदिर में ट्रस्ट का गठन होने के बाद पुजारियों ने इसका विरोध भी शुरु कर दिया है। मंदिर के पुजारियों ने आरोप है कि ट्रस्ट का एकतरफा गठन कर दिया गया है, जबकि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में मार्च 2020 में ही आवेदन कर दिया गया था। जिसकी सुनवाई उच्च न्यायालय के दूसरे बैंच में चल रही है। मंदिर के प्रधान पुजारी संतोष कुमार पंत ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने मंदिर का नवनिर्माण 1919 में किया है, इसके सारे प्रमाण हमारे पास मौजूद हैं। आज की बैठक में पुजारी डीएम के सामने अपना विरोध दर्ज कराएंगे।