प्लास्टिक व पॉलिथीन से नदियों के साथ ही जलीय जीव-जंतुओं को होने वाले नुकसान पर वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय सक्रिय हो गया है। मंत्रालय ने नदियों के साथ ही जलीय जीवों को होने वाले नुकसान का अध्ययन कराने का निर्णय लिया है। अध्ययन करने की जिम्मेदारी अमेरिका की नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों को सौंपी गई है। योजना के पहले चरण में गंगा नदी का अध्ययन किया जाएगा। जिसमें गोमुख से लेकर गंगासागर तक विस्तृत वैज्ञानिक सर्वे किया जाएगा। योजना को धरातल पर उतारने के लिए नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान के बीच कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं।
उल्लेखनीय है कि यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम के तहत साल 2018 में ‘प्लास्टिक फ्री वर्ल्ड’ की कल्पना की गई थी। जिसके तहत पांच जून को पूरी दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था। इसी कार्यक्रम के तहत भारत में भी नदियों को प्लास्टिक व पॉलीथिन मुक्त बनाने का संकल्प लिया गया है। साथ ही केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने यह अध्ययन कराने का निर्णय लिया है कि आखिरकार नदियों में हर साल कितना प्लास्टिक प्रवाहित किया जा रहा है? और इसका नदियों में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं के साथ ही आम इंसानों पर कितना असर पड़ रहा है?
‘सोर्स टू सी’ की कल्पना पर आधारित वैज्ञानिक अध्ययन में विज्ञानियों की टीम गोमुख से लेकर गंगा सागर तक अध्ययन करेगी। अध्ययन दो चरणों होगा। पहला चरण अप्रैल, मई व जून तक चलेगा। जबकि दूसरा चरण अक्टूबर, नवंबर व दिसंबर तक चलेगा। वैज्ञानिक अध्ययन के दौरान नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों के अलावा गंगा प्रहरियों की भी मदद ली जाएगी। योजना को धरातल पर उतारने के लिए नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान के बीच समझौता होने के साथ ही कई दौर की वार्ताएं भी हो चुकी है। ज्ञात हो कि यह पहली बार है कि मंत्रालय ने इतने बड़े पैमाने पर गंगा नदी का वैज्ञानिक अध्ययन कराने का निर्णय लिया है।
गंगा में प्लास्टिक व पॉलिथीन से कितना नुकसान पहुंच रहा है? वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इसके अध्ययन की जिम्मेदारी नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान को सौंपी है। दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों की टीम अध्ययन के लिए गोमुख जाएगी। नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी व भारतीय वन्यजीव संस्थान के बीच इस संबंध में समझौता भी हो चुका है।
– डॉ. विनोद बी माथुर, निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान