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गंभीर रूप से बीमार शिक्षकों को पहाड़ से मैदान में तबादले पर छूट

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हाईकोर्ट ने प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में कार्यरत बीमार शिक्षकों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने पहाड़ से मैदान में उनके तबादले पर लगी रोक पर सरकार को सशर्त छूट प्रदान करते हुए व्यवस्था दी है कि यदि कोई शिक्षक गंभीर रूप से बीमार है तो उसे मैदानी क्षेत्र में भेजा जा सकता है। लेकिन बदले में मैदानी क्षेत्र से वहां एक प्रतिस्थानी शिक्षक भेजना होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को शिक्षकों के रिक्त पदों को जून 2020 तक हर हाल में भरने के भी आदेश दिए हैं।

मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। सरकार ने कोर्ट की ओर से पूर्व में दिए गए आदेश में संशोधन के लिए प्रार्थना पत्र दायर किया था। इसमें पहाड़ से मैदानी क्षेत्र में तबादले में बीमार अथवा उनके परिजन के गंभीर बीमारी से ग्रसित होने पर छूट देने की मांग की गई थी।

कोर्ट ने इस पर सशर्त छूट देते हुए कहा कि सरकार इस बात का ध्यान रखे कि पहाड़ के स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते पठन-पाठन प्रभावित नहीं होना चाहिए। बता दें कि पूर्व में देहरादून निवासी स्व. दौलत राम सेमवाल की ओर से हाईकोर्ट को लिखे एक पत्र पर कोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में सुनवाई की थी।

इसमें कहा गया था कि स्कूल-कॉलेजों में छह से सात घंटे की निर्धारित पढ़ाई नहीं हो रही है। शिक्षकों की उपस्थिति देखने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। याचिका में इसके लिए बायोमीट्रिक मशीनें लगाने और एक दिन में तीन बार उपस्थिति लिए जाने की भी मांग की गई थी।

इस पर हाईकोर्ट ने पूर्व में हुई सुनवाई में प्रदेश के पहाड़ी जिलों से हरिद्वार, देहरादून या ऊधमसिंह नगर में शिक्षकों के तबादलों पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि शेष जिलों में शिक्षकों की संख्या कम से कम 70 प्रतिशत हो जाने तक यह रोक जारी रहेगी।

इसके साथ ही कोर्ट ने सभी स्कूल-कॉलेजों में शिक्षक, स्टाफ की उपस्थिति के लिए 24 माह के भीतर बायोमीट्रिक मशीनें लगाने और शिक्षकों की एक दिन में तीन बार उपस्थिति दर्ज कराने के आदेश भी हाईकोर्ट ने दिए थे। इसके अलावा, कोर्ट ने सरकार को अपनी वेबसाइट पर प्रदेश में मान्यताप्राप्त पाठ्यक्रमों की जानकारी, विद्यालय या शिक्षण संस्थान की जानकारी भी उपलब्ध कराने को कहा था।