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फिल्मी अंदाज में हुई डकैती पर रहस्यमयी जांच, एक और आरोपी को मिली जमानत…

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चुनाव के दौरान एक व्यक्ति से एक करोड़ रQपये आईजी पुलिस की गाड़ी में सवार पुलिस के जवानों से लूट लिए। पीड़ित एक सप्ताह तक शिकायत दर्ज कराने के लिए ही घूमता रहा। इसके बाद मामला मीडिया में आया तो वरिष्ठ अफसरों की नींद खुली, लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। यही कारण है कि एक के बाद एक आरोपी की जमानत होते ही जा रही है। सबसे बड़ा सवाल उन एक करोड़ के बैग का है, जो अब तक पुलिस कर्मी बरामद नहीं कर पाए हैं। अब सवाल यही उठ रहा है कि आखिरकार एक करोड़ का नीला बैग कहा गया। यही नहीं बार—बार इस मामले में पुलिस ने जिस प्रकार से बयान बदले वह भी कई सवाल उठाता है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि आखिर पुलिस इस पूरे मामले की जांच एसटीएफ के बजाय सीबीआई जांच कराने में क्यों हिचक रही है। आखिर वह कौन सा राज है जिसे छिपाने के लिए इस मामले में अब तक सीबीआई जांच की सिफारिश नहीं की जा रही है। बहरहाल बुधवार को इस मामले में आरोपी पुलिस कर्मी मनोज अधिकारी को मिली ज़मानत। सेशन कोर्ट से मिली ज़मानत। अनुपम शर्मा को पहले मिल चुकी है ज़मानत।

बताते चलें कि चार अप्रैल को फिल्मी अंदाज में उत्तराखंड पुलिस के दारोगा दिनेश नेगी कॉन्स्टेबल हिमांशु उपाध्याय और मनोज अधिकारी ने प्रॉपर्टी डीलर अनुरोध पवार से आचार संहिता का हवाला देते हुए उसकी गाड़ी से एक बैग छीन लिया था। आईजी की सरकारी गाड़ी के कारण अनुरोध पवार ने उस वक्त कोई विरोध नहीं किया। अगले दिन जब अनुरोध पवार पुलिस के पास जब्त किए गए बैग की जानकारी लेने पहुंचे तो पुलिस के हाथ पांव फूल गए। आनन फानन में सीसीटीवी फुटेज को खंगाला गया। अंततः एसएसपी ने प्राथमिक जांच के बाद दारोगा दिनेश नेगी कांस्टेबल हिमांशु उपाध्याय और मनोज अधिकारी को निलंबित कर दिया। इस बीच पुलिस की छवि पर दाग को देखते हुए मामले को एसटीएफ के हवाले कर दिया। एसटीएफ ने साक्ष्यों के आधार पर निलंबित तीनों पुलिसकर्मियों के अलावा कांग्रेस नेता अनुपम शर्मा को जेल भेज दिया था। अब तक की जांच में एसटीएफ आरोपियों के पास से किसी तरह की बरामदी नहीं कर पाई, बड़ी बात यह है कि विवेचना में अब तक यह साफ नहीं हो पाया कि लूटे गए बैग में कितनी रकम थी। यही कारण है कि अब तक दो आरोपियों को जमानत मिल गई है।
पीड़ित अनुरोध पवार की मानें तो उनका आरोपी कांग्रेस नेता अनुपम शर्मा के साथ लेनदेन काम मामला था। उन्होंने उनको यह बैग देहरादून राजपुर रोड स्थित डब्लूआईसी क्लब में दिया था। इसलिए रकम कितनी थी इसकी उनको जानकारी नहीं है। उधर आरोपी बैग में नगदी ना होने की बात कहकर घटना को नया मोड़ दे रहे हैं। दरअसल सबसे बड़ा सवाल इस बात का उठ रहा है कि एक दारोगा और दो सिपाही अपनी नौकरी को दांव पर लगाकर क्या सिर्फ बैग से कपड़ा लूटने गए थे। इस सवाल के तह में जाएंगे तो कुछ कुछ तस्वीरें साफ होती हुई दिखाई देंगी। मसलन चुनाव आचार संहिता के वक्त दो नंबर का पैसा होने की जानकारी के चलते लूट कांड को इसलिए अंजाम दिया गया हो ताकि पीड़ित अपनी शिकायत करने ना जाए पूरी कहानी इसी हिसाब से तैयार की गई थी लेकिन उस तैयारी में वादी के सामने आने के बाद हालात बदल गए। यहां मित्र पुलिस का खतरनाक चेहरा भी सबके सामने आ गया। अब जब पुलिस के चेहरे से नकाब उतरा तो लुटेरों को बचाने का खेल शुरू हो गया। सबसे पहले जांच के नाम पर पुलिस टालमटोल करती रही। उसके बाद एसटीएफ भी कुछ इसी राह पर दिखाई थी। अब तक जिस प्रकार के हालात दिख रहे हैं उससे सरकार पर भी कई सवाल उठ खड़े हुए हैं।