धार्मिक पर्यटन उत्तराखंड की आर्थिकी का आधार है। हर साल लाखों पर्यटक उत्तराखंड के धामों के दर्शन करने आते हैं। पर्यटक अपने साथ यहां से अच्छी यादें लेकर जाते हैं, लेकिन सवाल ये है कि वो उत्तराखंड को क्या देकर जाते हैं। चलिए हम बताते हैं। कई गैर जिम्मेदार पर्यटक उत्तराखंड को कूड़े-कचरे का अंबार देकर जाते हैं, जिससे हमारी नदियां प्रदूषित हो रही हैं, पहाड़ों की सुंदरता खो रही है। ताजा मामला चमोली में स्थित हेमकुंड साहिब का है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित ये इलाका हेमगंगा का उद्गम स्थल है, पर इन दिनों इस क्षेत्र की हालत दयनीय है। चारों तरफ कूड़ा-कचरा फैला है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। साफ सफाई की उचित व्यवस्था नहीं है, और सच कहें तो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हर किसी की गतिविधि पर नजर रख पाना आसान भी नहीं है। इन दिनों क्षेत्र में प्लास्टिक का कूड़ा फैला है। हेमकुंड से निकलने वाली हेम गंगा के उद्गम स्थल के पास भी प्लास्टिक का कचरा जमा है, जो कि पूरे क्षेत्र के लिए खतरा है। हर साल लाखों श्रद्धालु हेमकुंड साहिब के दर्शन करने आते हैं। इनके साथ आती हैं प्लास्टिक की बोतलें, थैले और दूसरा सामान, जो कि यात्रा खत्म होने के बाद यहीं रह जाता है।
पिछले महीने 1 जून को हेमकुंड साहिब के कपाट खुले थे, तब से अब तक 1 लाख 70 हजार से ज्यादा श्रद्धालु यहां दर्शन कर चुके हैं। यहां आ रहे श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ रही है, ये अच्छी बात है, लेकिन जिस तरह क्षेत्र में प्लास्टिक कचरे के ढेर लग रहे हैं, वो पर्यावरण के लिए अच्छा नहीं है। पिछले साल भी यहां जगह-जगह कचरे के ढेर नजर आए थे। बर्फबारी हुई तो ये कचरा बर्फ की सतह के नीचे जम गया। इस बार भी यही हाल है। हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण के संतुलन के लिए ये बड़ा खतरा है। प्रशासन को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए। साफ-सफाई की व्यवस्था बनाए रखने के साथ ही यात्रियों को भी जागरूक करना होगा। उन्हें बताना होगा कि उत्तराखंड जरूर आएं, यहां से अच्छी यादें लेकर जाएं, लेकिन यहां के पर्यावरण को बचाने के लिए अपना योगदान भी देते जाएं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्लास्टिक का सामान ले जाने पर रोक लगाई जानी चाहिए।