देहरादून : देहरादून में सड़क व यातायात की बदहाल स्थिति आए दिन जिंदगी लील रही है। सड़क सुरक्षा की बात करें तो यहां की सड़कों पर 48 ऐसे ब्लैक स्पॉट हैं, जिनमें से प्रत्येक पर बीते तीन वर्षों में औसतन पांच या इससे अधिक लोगों की मौत हो जाती है। शिमला बाईपास पर हुआ हादसा, एक बार फिर सड़क सुरक्षा इंतजामों को सवालों के घेरे में खड़ा कर गया। देखना होगा कि तंत्र की तंद्रा इस हादसे के बाद टूटती है या और मौतों का इंतजार जारी रहेगा।
देहरादून में हर साल औसतन सवा से डेढ़ सौ लोग सड़क हादसों में जान गंवाते हैं। इनमें से ज्यादातर हादसे अंधे मोड़, सड़क पर बने गड्ढों और बेवजह बने डिवाइडर के कारण होते हैं। हादसों की अधिकता वाले स्थानों को यातायात पुलिस ने डेंजर प्वाइंट के रूप में चिह्नित किया है, जिनकी संख्या अकेले देहरादून में 48 है। बीते साल इन ब्लैक स्पॉट को चिह्नित करने का उद्देश्य इन्हें सुरक्षित बनाना था, मगर मौजूदा समय में भी आधे से अधिक ब्लैक स्पॉट पर सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए जा सके हैं।
सूबे में हैं 400 ब्लैक स्पॉट
राज्य की सड़कों के 400 ब्लैक स्पॉट सफर को खतरनाक बना देते हैं। उत्तराखंड में सड़क हादसों के आंकड़े रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। राज्य में सड़क हादसों में मौतों के लगातार बढ़ते आंकड़ों पर केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भी चिंता जता चुका है। बावजूद इसके स्थिति जस की तस बनी हुई है।
गड्ढे लील चुके हैं 444 जिंदगियां
दून की बदहाल सड़कों पर मौजूद गड्ढे की वजह से 2013 से लेकर बीते साल नवंबर माह तक 444 जिंदगियां लील चुके हैं। जबकि, 500 से ज्यादा लोग इनकी वजह से महीनों अस्पताल में भर्ती रहे और कई को दिव्यांगता के रूप में जीवनभर का दर्द मिला।
बोली एसएसपी
एसएसपी निवेदिता कुकरेती का कहना है कि नेशनल व स्टेट हाईवे पर होने वाले हादसों के कारणों का सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की गई है। सड़कों को सुरक्षित बनाने की जिम्मेदारी अन्य विभागों की भी है, इस संबंध में उन्हें भी पत्र भेजा जा रहा है। ब्लैक स्पॉट को सुरक्षित बनाने का प्रयास किया जा रहा है।