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भारत का हर मुस्लिम भारत का ही नागरिक है और भारत का ही नागरिक रहेगा।

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देश में एनआरसी और सीएए के विरोध में अराजकता का माहौल बन गया है, हर जगह दंगे फसाद हो रहे हैं। मानो कुछ आपराधिक तत्वों को इस कानून के विरोध की आड़ में अराजकता फैलाने का मौका मिल गया हो। राष्ट्रपति मंजूरी मिलने के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक अब कानून बन चुका है जिस के विरोध में देश के कई राज्यो में प्रदर्शन हो रहे हैं, इस पूरे प्रदर्शन की शुरुआत असम से हुई और आज पूरा भारत ऐसे दौर से गुज़र रहा जब लोगों को ये समझाना मुश्किल होता जा रहा है कि नागरिकता कानून से देश के किसी भी नागरिक को कोई नुकसान नही है, लोग सीएए और एनआरसी के अंतर को नहीं समझ पा रहे हैं।
आज पूरे देश मे इसे लेकर गलत धारणा बना दी गयी है कि CAA और NRC से भारत के मुसलमानों को खतरा है उन्हें भारत से निकाल दिया जाएगा जबकि सच ये है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो भारत के मुस्लिम नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित कर दे।
एआरसी अब तक असम में अधिवासित सभी नागरिकों की एक सूची है, और वर्तमान में असम के अंदर जो नागरिक वास्तविक रूप से भारत के हैं उनकी नागरिकता बनाये रखने और जो लोग बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं उन प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए प्रयास किया जा रहा है।
अभी हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में घोषणा की थी कि अब एनआरसी पूरे देश मे लागू किया जाएगा। एनआरसी की वर्तमान सूची में शामिल होने के लिए व्यक्ति के परिवार वालों का नाम 1951 मे बने पहले नागरिकता रजिस्टर में होना चाहिए या फिर 24 मार्च 1971 तक की चुनाव सूची में होना चाहिए। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में नाम दर्ज करवाने के लिए अनिवार्य दस्तावेजों में जन्म प्रमाणपत्र, शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र, भूमि और किरायेदारी का कोई रिकॉर्ड, नागरिकता प्रमाणपत्र, स्थायी आवास प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, एलआईसी पालिसी, सरकार द्वारा जारी लाइसेंस या प्रमाणपत्र, बैंक या पोस्ट आफिस का खाता, सरकारी नौकरी का प्रमाणपत्र, शैक्षिक प्रमाणपत्र, या अदालती रिकॉर्ड होना चाहिए। इनमें से कोई भी एक प्रमाणपत्र होने पर आप राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में नाम दर्ज करवाने के योग्य माने जाएंगे। जिन बुजुर्गो का नाम किसी भी दस्तावेज में नहीं होगा उन्हें भी उनकी उम्र को देखते हुए देश से बाहर नहीं किया जा सकता। एनआरसी लागू होने से देश में घुसे अवैध घुसपैठियों पर लगाम लगाई जा सकेगी।
वहीं नागरिकता संशोधन कानून देश को मिली आजादी के बाद सन 1955 के अधिनियम को बदल रहा है, नए विधेयक के तहत भारत के पड़ोसी मुल्क जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, और बाकी के आसपास के देशों से जो हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या अन्य अल्पसंख्यक भारत आते हैं या आ चुके हैं, उन्हें भारत में अब नागरिकता दी जाएगी, अब सोचने वाली बात ये है कि जो अन्य देशों में अल्पसंख्यक हैं उनके हितों को देखते हुए भारत सरकार उन्हें नागरिकता देगी तो देश में इतना ज़्यादा हिंसक प्रदर्शन क्यों हो रहा है ? नया कानून नागरिकता देने की बात कर रहा है ना कि नागरिकता छीनने की। चलिए इसे भी अब स्पष्ट कर देते हैं पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ये मुस्लिम देश है यहाँ अल्पसंख्यक हिन्दू या अन्य धर्म के लोग होंगे सिवाय मुस्लिम को छोड़ कर, अब धर्म के आधार पर जब इन देशों में इन अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता रहा तब ये अल्पसंख्यक इन देशों को छोड़कर भारत की शरण में आते रहे।गौर करने वाली बात ये है कि आज़ादी के बाद नेहरू- लियाक़त एक्ट अल्पसंख्यको के हितों के लिए ही बनाया गया था जिसे भारत ने तो स्वीकार किया पर पाकिस्तान ने इस एक्ट पर अमल नही किया। आज देशभर में हर मुस्लिम को ये कहकर बरगलाया जा रहा है कि नागरिकता कानून के लागू हो जाने से सभी मुस्लिमों को भारत छोड़ना पड़ेगा, जबकि ऐसा कोई कानून लागू नहीं हो रहा है भारत का हर मुस्लिम भारत का ही नागरिक है और भारत का ही नागरिक रहेगा भी।पिछले विधेयक के अनुसार भारतीय नागरिक होने के लिए भारत मे 11 साल रहना अनिवार्य था, नए कानून के अनुसार पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक अगर 6 साल से भारत में रह रहे हों तो उन्हें अब भारतीय नागरिकता दी जा सकती है।