देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे स्थान हैं, जहां पर माना जाता है कि साक्षात् देवी देवताओं का वास है। सजग इंडिया अपनी धार्मिक यात्रा में आज आपको एक ऐसे मंदिर ले चलेगा, जहां आम श्रद्धालुओं के साथ ही सेना के बड़े-बड़े अफसर भी अपना शीश झुकाते हैं।पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट तहसील में महाकाली का हाट कालिका मंदिर स्थित है, जिसे महाकाली का साक्षात मौजूदगी वाला स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि हर रात महाकाली यहां विश्राम करने के लिए पहुंचती हैं। हर सुबह मंदिर जाने के बाद उनके रात्रि विश्राम के प्रमाण मिलते हैं। हाट कालिका मंदिर में हर रोज शाम की आरती के बाद माता को भोग लगाया जाता है।जिसके बाद माता की शयन आरती गाई जाती है,माता का बिस्तर लगाया जाता है और फिर मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। कहा जाता है कि माता रात्रि विश्राम के लिए मंदिर में पहुंचती हैं, सुबह जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तो बिस्तर में कुछ इस तरह का आभास होता है कि जैसे किसी ने इसमें रात्रि विश्राम किया हो।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस हाट कालिका मंदिर की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। कुर्मांचल भ्रमण पर निकले आदिगुरु शंकराचार्य जब जागेश्वरधाम जा रहे थे तब गंगोली में उन्हें किसी देवी का प्रकोप होने की बात पता चली, तब शंकराचार्य के मन में यह विचार आया कि देवी इस तरह का तांडव नहीं मचा सकती और यह किसी आसुरि शक्ति का काम है, लोगों को राहत दिलाने के उद्देश्य से वो गंगोलीहाट को रवाना हो गए, बताया जाता है कि जगदगुरु जब मंदिर के पास पहुंचे तो वो जडवत हो गए, लाख चाहने के बाद भी उनके कदम आगे नहीं बढ़ पाए। शंकराचार्य को देवी की शक्ति का एहसास हो चुका था, जिसके बाद वह देवी से क्षमा याचना करते हुए पुरातन मंदिर तक पहुंचे। पूजा, अर्चना के बाद मंत्र शक्ति के बल पर महाकाली के रौद्र रूप को शांत कर शक्ति के रूप में कीलित कर दिया और गंगोली क्षेत्र में सुख, शांति व्याप्त हो गई।
यह मन्दिर देश की सबसे पुरानी सेना कुमाऊँ रेजीमेन्ट की असीम आस्था का केन्द्र भी है, इसे गंगोलीहाट महाकाली की महिमा ही कहेंगे कि कुमाऊँ रेजीमेंट के जवान माता के जयघोष के साथ ही लड़ाई में उतरते हैं,और दुश्मनों का सामना करते हैं।कुमाऊँ रेजीमेंट की सभी बटालियन के जवान और अधिकारी महाकाली के इस मंदिर में शीश झुकाने पहुंचते हैं।
कुमाऊँ रेजीमेंट द्वारा मंदिर में सौंदर्यीकरण से लेकर निर्माण के काफी कार्य कराए गए हैं।सन1880 की कुमाऊं रेजिमेंट द्वारा चढ़ाई गई घंटी भी मंदिर में मौजूद है।कुमाऊँ रेजीमेंट के बड़े से बड़े अधिकारी अपनी तैनाती के दौरान महाकाली के मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।कुमाऊँ रेजीमेंट के जवानों की आस्था मंदिर के साथ ऐसी है कि कहा जाता है कि बस महाकाली का नाम लेते ही लड़ाई के मैदान में जवानों की शक्ति दोगुनी हो जाती है। कुमाऊं रेजिमेंट का कोई भी जवान जय महाकाली के उद्घोष के बिना लड़ाई के मैदान में नहीं उतरता है।
महाकाली के दर्शनों के लिए हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रों में हाट कालिका मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है।मंदिर चारों ओर से देवदार के पेड़ों ने घिरा हुआ है, सैकड़ों साल पुराने देवदार के पेड़ मंदिर को और ज्यादा सुंदर और विहंगम बनाते हैं। आप भी कभी पिथौरागढ़ आएं तो माता हाट काली के दर्शन जरूर करें।