मंदिर की पौराणिक कहानियों में बताया जाता है कि केदारखंड के मानसखंड में सिद्धपीठ मां ज्वालपा देवी मंदिर को नवालिका नदी तट पर स्थित होने का वर्णन है। मानस खंड में कहा गया है कि इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सुची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी। सूची के तप से मां ने खुश होकर ज्वाला के रुप में उन्हें दर्शन दिए। जब से मां ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रुप में भक्तों व श्रद्धालुओ की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। अणेथ के अणथ्वाल सनातन काल से मां के उपासक हैं। जो अणेथ के साथ ही नौगांव व कोला में रहते हैं।
मंदिर के साथ जुड़ी एक अन्य कहानी के अनुसार सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर स्थल को पुरातन काल में अमकोटी नामक स्थान के रुप में जाना जाता था। जो कफोलस्यूं, खातस्यूं, मवालस्यूं, रिंगवाड़स्यूं, घुड़दौड़स्यूं, गुराड़स्यूं पट्टियों के विभिन्न गांवो के ग्रामीणों के रुकने का स्थान था। एक दिन इस स्थान पर एक कफोला बिष्ट ने अपना सामान (नमक से भरे कट्टे) इस स्थान पर रखा।जिसे वह आराम करने के बाद दोबारा नहीं उठा पाया। कट्टा खोलने पर उसने देखा कि उसमें मां की मूर्ति थी।जिसके बाद वह मूर्ति को उसी स्थल पर छोड़कर चला गया। जिसके बाद एक दिन अणेथ गांव के दत्त राम के सपने में मां ज्वाल्पा ने दर्शन देकर मंदिर बनाए जाने को कहा।