सरोवर नगरी नैनीताल की खूबसूरती पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, प्रकृति की खूबसूरती के साथ ही यहां के धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं को भी यहां खींच लाते हैं। आज सजग इंडिया आपको ऐसे ही एक धार्मिक स्थल नैंना देवी मंदिर के दर्शन कराएगा। जहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में मत्लीताल के उत्तरी छोर पर मां नैना देवी मंदिर स्थित है। यह मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
प्रचलित मान्यता के अनुसार मां सती के नैन, नैनी झील में गिरने के बाद मां सती के शक्ति रुप की पूजा के उद्देश्य से ही नैंना देवी मंदिर की स्थापना हुई। ये मंदिर नेपाल के पैगोडा और गौथिक शैली का समावेश है, पूरे देश से यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब दक्ष पुत्री सती का विवाह शिव के साथ हुआ था तो एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया जिसमें शिव और सती को नहीं बुलाया। सती हठकर इस यज्ञ में पहुंच गई और यज्ञ में अपने पति शिव की आहूति नहीं दिए जाने से अपमानित होकर यज्ञ के हवन कुंड में कूद गई।जिसके बाद भगवान शिव ने तांडव शुरु कर दिया और राजा दक्ष की यज्ञशाला नष्ट कर दी और सती का शव लेकर विलाप करते हुए कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे।
भगवान शिव का तांडव देखकर अनहोनी की आशंका पर भगवान विष्णु ने सती के शव पर चक्र चलाया, जिससे मां सती के अंग विभिन्न जगह गिरे जहां-जहां यह अंग गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई, मां सती की आंखें नैनीताल के नैंनी झील में गिरी तभी से यहां नैंना देवी के मंदिर की स्थापना की गई।
1880 में भूस्खलन की टपेट में आने से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दोबारा बनाया गया। इसके पुनर्निर्माण को लेकर कहा जाता है कि मां नैंना देवी ने शहर के प्रमुख व्यवसायी मोती राम शाह के पुत्र अमरनाथ शाह को स्वप्न में आकर ये बताया कि उनकी मूर्ति कहां दबी हुई है, जिसके बाद अमरनाथ शाह ने अपने मित्रों की मदद से मां की मूर्ति का उद्धार किया और नये सिरे से मंदिर के निर्माण शुरु किया सन् 1883 में मंदिर बनकर तैयार हुआ। हर साल 13 जून को मां नैंना देवी जन्मोत्सव मनाया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं।