
उत्तराखंड राज्य 20वें वर्ष में दाखिल हो गया है। किशोर से युवावस्था की ओर बढ़ रहे राज्य ने 19 वर्षों में राजनीतिक स्थिरता समेत कई उपलब्धियां अपने खाते में दर्ज की हैं। शुरुआती चार-पांच वर्षों में ही उद्योगों को लुभाने में मिली कामयाबी अब नई छलांग लगाने को तत्पर है।
अटल आयुष्मान योजना के बूते अब गरीब आदमी तक बेहतर इलाज की पहुंच बनी है तो प्रति व्यक्ति आमदनी और विकास दर में राज्य ने राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन के सिलसिले को बरकरार रखा है। हालांकि इस सबके बावजूद सरकारी शिक्षा में गुणवत्ता, पर्वतीय क्षेत्रों में चिकित्सा समेत बुनियादी ढांचे की मजबूती की चुनौती बनी हुई है। वहीं अर्थ व्यवस्था का आकार बड़ा होने के बावजूद सुगम और दुर्गम के बीच सामाजिक-आर्थिक विषमता की गहरी होती खाई को पाटने के लिए राज्य को अभी बहुत कुछ कर गुजरना है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर रहे मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 20वें स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि होंगे।
त्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद पिछले ढाई साल का वक्फा सियासी स्थिरता के लिहाज से काफी बेहतर रहा। इसका कारण भी साफ है, सत्तारूढ़ भाजपा के पास विधानसभा में तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत है। दरअसल, उत्तराखंड में राजनैतिक रूप से उथल-पुथल का एकमात्र कारण यह रहा कि यहां जो भी पार्टी सत्ता में आई, जनता ने उसे कभी इतना बहुमत नहीं दिया कि वह फ्री हैंड होकर काम कर सके। इसके अलावा पार्टियों का अंतर्कलह भी स्थिर सरकार देने में लगातार आड़े आता रहा। यही वजह रही कि महज 19 साल की आयु में उत्तराखंड में आठ मुख्यमंत्री बन चुके हैं और इनमें से भुवन चंद्र खंडूड़ी को दो बार यह पद संभालने का मौका मिला
नौ नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड देश के मानचित्र पर 27 वें राज्य के रूप में अवतरित हुआ, तब भाजपा आलाकमान ने नित्यानंद स्वामी को पहली अंतरिम सरकार का मुख्यमंत्री पद सौंपा। स्वामी को पहले ही दिन से पार्टी के अंतर्विरोध से जुझना पड़ा। इसकी परिणति यह हुई कि एक साल पूर्ण करने से पहले ही उन्हें पद से रुखसत होना पड़ा और उनके उत्तराधिकारी बने भगत सिंह कोश्यारी। कोश्यारी के मुख्यमंत्री बनने के चार महीने बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा को बेदखल कर सत्ता पर काबिज हो गई। कोश्यारी अब तक सबसे कम समय कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री रहे हैं।