देहरादून : वर्ष 2017 में दून ने मेट्रो रेल का एक हसीन ख्वाब देखा था। ख्वाब में हसीन भविष्य के इतने रंग उमड़-घुमड़ रहे थे कि सरकार ने भी झटपट उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन का गठन कर डाला। हाथों-हाथ देहरादून से लेकर हरिद्वार, ऋषिकेश व मुनिकीरेती तक मेट्रोपोलिटन क्षेत्र घोषित कर दिया गया। करीब दो साल के अथक प्रयास के बाद परियोजना की डीपीआर बनाई गई और तय किया गया कि पहले चरण में करीब पांच हजार करोड़ रुपये की लागत से दून में आइएसबीटी से कंडोली व एफआरआइ से रायपुर के कॉरीडोर का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए तमाम संसाधन जोड़े गए और पांच करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च करने के बदा अब मेट्रो का सफर लगभग समाप्त भी हो गया है।
मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम (एलआरटीएस) आधारित मेट्रो रेल परियोजना को दून के लिए अनुपयुक्त बताते हुए इस पर विचार करने से इन्कार कर दिया। वह दून में मेट्रो की जगह रोपवे (केबल कार) का संचालन कराने के पक्ष में हैं। हालांकि, रोपवे के लिए अभी कुछ भी कसरत नहीं की गई है। यही वजह रही कि हाल में मेट्रो रेल परियोजना के लिए बनाए कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) प्लान की दो बैठक मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हो चुकी हैं, दोनों ही बार मेट्रो का जिक्र नहीं आया। क्योंकि जब मेट्रो को लेकर उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन व मुख्य सचिव के बीच तालमेल नहीं बैठ पा रहा था, तब तय किया गया था कि मुख्यमंत्री की बैठक में ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। इसके साथ ही अब विशेषज्ञों में मेट्रो बनाम केबल कार को लेकर नई चर्चा जरूर छिड़ गई है।
तय किए गए कॉरीडोर, यात्रियों का भी आकलन
- कॉरीडोर———लंबाई (किमी)———यात्री संख्या
- आइएसबीटी-कंडोली———9.66———81292
- एफआरआइ-रायपुर———12.47———88463
इस तरह तय किया किराया
किलोमीटर———किराया (रु.में)
0-02———13
2-06———27
छह से अधिक———40
मेट्रो चलती तो सालभर में 672 करोड़ की आय
जिस परियोजना को मुख्य सचिव नकार चुके हैं, उसे उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने आय के लिहाज से मुफीद माना है। प्रबंधक निदेशक त्यागी के अनुसार मेट्रो का संचालन शुरू होते ही सालभर में करीब 672 करोड़ रुपये की आय होगी, जबकि कुल खर्चे 524 करोड़ रुपये के आसपास रहेंगे। इस तरह एलआरटीएस आधारित यह परियोजना आरंभ से ही फायदे में चलेगी और इसके निर्माण की लागत (दून कॉरीडोर में करीब चार हजार करोड़ रुपये) के अलावा भविष्य में सरकार से किसी भी तरह के वित्तीय सहयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी।
उतार-चढ़ाव के बाद संभल गई थी परियोजना
- दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक (एमडी) पद से रिटायर होने के बाद जितेंद्र त्यागी ने राज्य सरकार के आग्रह पर फरवरी 2017 में नवगठित उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक का पद्भार ग्रहण किया।
- परियोजना की डीपीआर तैयार होने के कई माह तक कुछ भी काम न होने पर सितंबर 2017 में जितेंद्र त्यागी ने एमडी पद से इस्तीफा दे दिया था।
- सरकार ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और जितेंद्र त्यागी से आग्रह करने बाद उन्होंने इस्तीफा वापस लिया।
- इसके बाद सरकार ने 75 करोड़ रुपये का प्रारंभिक बजट भी मेट्रो के लिए जारी कर दिया। हालांकि यह बजट सिर्फ वेतन-भत्तों व छोटे-मोटे कार्यों के लिए ही था।
बोले अधिकारी
- उत्पल कुमार (मुख्य सचिव, उत्तराखंड) का कहना है कि एलआरटीएस लागत व धरातलीय कवरेज के लिहाज से बड़ी परियोजना है, जबकि केबल कार में इस तरह की बाध्यता नहीं रहेगी। दूसरी तरफ सार्वजनिक परिवहन के हर एक विकल्प पर विचार किया जाना जरूरी है। इस दिशा में काम भी चल रहा है।
- जितेंद्र त्यागी (प्रबंध निदेशक, उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन) का कहना है कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली बैठक में भी मेट्रो परियोजना पर बात आगे नहीं बढ़ पाई। यदि सरकार केबल कार पर आगे बढ़ती है तो नए सिरे से काम करना होगा, जबकि मेट्रो परियोजना में सभी तरह की कसरत कर ली गई थी।