आवारा गाय-बैलों के द्वारा कड़ी मेहनत से तैयार फसल चर लेने की समस्या से जहां यूपी के किसानों की नींद उड़ी हुई है, वहीं कई कथित गौरक्षकों के लिए यह समस्या मोटी कमाई का मौका बन गई है. पशुओं को गांवों-खेतों से दूर ले जाने के लिए वे अच्छा पैसा वसूल रहे हैं.
Stray cattle UP यूपी के किसान आवारा पशुओं के खेत चर लेने जैसी समस्याओं से परेशान हैं, लेकिन दूसरी तरफ, यह कई NGO से जुड़े गौरक्षकाें के लिए यह गाढ़ी कमाई का मौका बन गया है. आजतक की टीम ने यूपी के बागपत जिले में ऐसे कई एनजीओ कर्मियों को पकड़ा जो आवारा पशुओं को खेतों से हटाकर कहीं और पहुंचाने के लिए प्रति पशु 3500 से 6000 रुपये वसूल रहे हैं.
असल में आवारा पशुओं को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार काफी सख्त हो गई है. सभी जिला और निकाय अधिकारियों को 10 जनवरी तक आवारा पशुओं को पकड़कर गोशालाओं में रखने के निर्देश दिए गए थे. यह कहा गया कि आवारा पशुओं को पकड़ने की जिम्मेदारी प्रशासन की होगी. अगर कोई काउ शेल्टर में बंद पशु को अपना बताते हुए उसे लेने आता है तो उस पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है. हालांकि यह डेडलाइन खत्म हो गई है, लेकिन किसानों को अभी इस समस्या से छुटकारा नहीं मिला है.
राज्य में अवैध बूचड़खानों पर सख्ती और उन्हें बंद करने के बाद आवारा गाय-बैल की संख्या तेजी से बढ़ी है. इन आवारा पशुओं का गांवों में आतंक रहता है और ये फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. आजतक की पड़ताल के दौरान यह पता चला कि कई एनजीओ किसानों की इस दुर्दशा का फायदा उठा रहे हैं. बागपत के पुसर गांव में हमें बीमार पशुओं को ढोने वाला एक एंबुलेस मिला. ध्यान फाउंडेशन एनजीओ से जुड़ा यह एम्बुलेंस असल में आवारा पशुओं को ले जा रहा था, जिन्हें ग्रामीणों ने एक पंचायत भवन के भीतर कैद कर रखा था. इसे हमने अपने कैमरे में रेकॉर्ड किया.
एम्बुलेंस के साथ जा रहे स्वयंसेवकों ने हमसे बात में यह दावा किया कि वे इन पशुओं को मुफ्त में नरेला के गोशालाओं में पहुंचाने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि ये पशु फसलों को काफी नुकसान पहुंचा रहे थे, जिसकी वजह से ग्रामीणों ने इन्हें पीटा भी था. हमें पशुओं की चिंता थी, इसलिए हम यह सब कर रहे हैं. हम मेनका गांधी के एनजीओ पीपल्स फॉर एनिमल्स से जुड़े हैं.
लेकिन ग्रामीणों ने इस एनजीओ के दावे को झूठा बताया. ये एनजीओ पशुओं को ले जाने के लिए मोटा पैसा लेते हैं. असल में गौरक्षकों द्वारा मॉब लिंचिंग के डर की वजह से लोग आवारा पशुओं को किसी अन्य ट्रांसपोर्ट साधन से नहीं ले जाते. एनजीओ इसका ही फायदा उठा रहे हैं. ऋषिपाल सिंह नाम के एक ग्रामीण ने बताया, ‘हम गांव के हर किसान से प्रति एकड़ 40 रुपये का चंदा लगा रहे हैं. हमने पांच पशुओं की ढुलाई के लिए 20,000 रुपये दिए हैं, यानी 5,000 रुपये प्रति पशु.’
आजतक ने इस बारे में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और पेटा से जुड़ी अम्बिका शुक्ला से ई-मेल संपर्क किया है, लेकिन अभी उनसे जवाब नहीं मिला है. गौरतलब है कि यूपी में 510 रजिस्टर्ड काउ शेल्टर हैं और 50 जिलों में ऐसे अन्य आश्रयस्थल भी बनाए जाएंगे. हर काउ शेल्टर के लिए सालाना 1.20 करोड़ रुपए का बजट दिया जाता है. एक अनुमान के अनुसार 90 फीसदी ऐसे आवारा पशुओं में बछड़े या बैल होते हैं, गायें महज 10 फीसदी होती हैं. साल 2012 की गणना के अनुसार यूपी में करीब 2 करोड़ गायें हैं.