प्रसिद्ध साहित्यकार और ज्ञानपीठ अवॉर्ड से सम्मानित कृष्णा सोबती का निधन हो गया। 18 फरवरी 1925 को वर्तमान पाकिस्तान के एक कस्बे में सोबती का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण और स्त्री जीवन की जटिलताओं का जिक्र किया था। सोबती को राजनीति-सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए भी जाना जाता है।
उनके उपन्यास मित्रो मरजानी को हिंदी साहित्य में महिला मन के अनुसार लिखी गई बोल्ड रचनाओं में गिना जाता है। 2015 में देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज होकर उन्होंने अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापस लौटा दिया था। उनके एक और उपन्यास जिंदगीनामा को हिंदी साहित्य की कालजयी रचनाओं में से माना जाता है।
सोबती अपने जीवन के आखिरी वर्षों तक साहित्यिक कार्यों से जुड़ी रहीं। अपने उपन्यास में उन्होंने स्त्री जीवन की परतों और दुश्वारियों को खोलने की कोशिश की। उनके पात्रों के किरदार यथार्थ के काफी निकट होते थे। कृष्णा सोबती के कालजयी उपन्यासों में सूरजमुखी अंधेरे के, दिलोदानिश, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, मित्रो मरजानी का नाम लिया जाता है।