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मलिन बस्ती और सीवर बन रहा रिस्पना और बिंदाल के लिए अभिशाप

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साल 2018 में प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार ने रिस्पना से ऋषिपर्णा अभियान के तहत 2.50 लाख पौधों का रोपण किया था. वहीं इस महीने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मौजूदगी में रिस्पना और बिंदाल नदी पर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट (RFD) के कार्यों को लेकर  एमडीडीए और साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के बीच एक विशेष समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए. लेकिन लगातार यह सवाल उठता रहा है कि क्या दोनों नदियों के किनारे बसी मलिन बस्तियों को हटाए बगैर यह नदियां पुनर्जीवित हो पाएंगी?
बता दें कि नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद अतिक्रमण क्षेत्र में आने वाली मलिन बस्तियों के लिए 2018 में प्रदेश सरकार विशेष अध्यादेश लाकर मंजूरी दे चुकी है. इस अध्यादेश के तहत 11 मार्च 2016 के बाद बसी मलिन बस्तियों पर कार्रवाई की जाएगी. लेकिन इससे पहले बसी बस्तियों को सिर्फ तीन साल तक राहत रहेगी. ऐसे में दून की रिस्पना और बिंदाल नदी किनारे बसी बस्तियां भी आने वाले 3 सालों तक के लिए पूरी तरह सुरक्षित हो चुकी हैं.

वहीं पर्यावरणविदों ने सरकार के इस अभियान पर सवाल खडे़ किये हैं. पर्यावरणविद अनिल जोशी का कहना है कि यदि शहर की गंदगी और सिवर नदियों में गिरता रहेगा तो नदियों को पुनर्जीवित करने में कई साल लग जाएंगे. वहीं नदी किनारे बसे लोगों को लेकर उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और जनता को नदी के व्यवहार को समझने की जरूरत है. नदी कभी भी अपना आकार बदल सकती है. ऐसे में ये उन सभी लोगों के लिए एक बड़ा खतरा है, जो नदी किनारे बसे हुए हैं.

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