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शिंखलेश्वर धाम: जहां से दिखता है पूरे नगर का नजारा, 33 करोड़ देवी-देवताओं का रहता है वास

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हर साल मार्च और अप्रैल माह के मध्य में वारुणी यात्रा होती है। जो कि वरुणावत पर्वत पर स्थित 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे शिंखलेश्वर और व्यास कुंड धाम से होते हुए 20 किमी की यात्रा पूरी करती है। इस पर्वत पर स्थित शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड का अलग-अलग धार्मिक पुराणों और केदारखंड में उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि इस वारुणी यात्रा को करने से 33 करोड़ देवी देवताओं के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है।
वरुणावत पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बांज-बुरांश के पेड़ों के बीच  शिंखलेश्वर धाम और व्यास कुंड मौजूद हैं। जहां से उत्तरकाशी नगर की खूबसूरती को नंगी आंखों से देखा जा सकता है।
मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों के वनवास के दौरान कुंती ने शिंखलेश्वर धाम में भगवान शिव की आराधना की थी। इस दौरान एक दिन जब कुंती को प्यास लगी, तो उन्होंने अपने भतीजे भगवान कृष्ण को याद किया। जिसके बाद बताते हैं कि भगवान कृष्ण ने तीर मारकर पानी का व्यास कुंड बनाया। जो आज भी वहां मौजूद है।
बताया जाता है कि इस कुंड में जल हमेशा एक समान बना हुआ है। बताते हैं कि यह पानी न कभी बढ़ता है और न ही घटता है। हर साल वारुणी यात्रा के दौरान श्रद्धालु इस जल को ग्रहण करते पुण्य लाभ कमाते हैं।
वहीं शिव पुराण के अनुसार बताया जाता है कि जब भगवान कार्तिक कैलाश से नाराज होकर चले गए थे, तो वे कुछ समय के लिए यहां पहुंचे थे। केदारखंड में शिंखलेश्वर धाम के बारे में कहा गया है कि यहां पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है।