उत्तराखण्ड पर भगवान शिव की ऐसी महिमा है कि यहां कण-कण में भगवान शिव विराजते हैं, भगवान शिव का सबसे बड़ा धाम केदारनाथ धाम भी यहीं स्थित है। यही नहीं पंचकेदारों के नाम से मशहूर पांचकेदार भी यहीं मौजूद हैं। सजग इंडिया की धार्मिक यात्रा में पिछले अंक में आपने देखा कि तुंगनाथ मंदिर में भगवान के हृदय और बाहों की पूजा होती है, वहीं आज हम आपको कल्पेश्वर मंदिर ले चलते हैं, जहां भगवान शिव के जटाओं की पूजा होती है।
कल्पेश्वर मंदिर उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले में स्थित है।यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित मंदिर है।कल्पेश्वर मंदिर पंच केदारों में से एक है, तथा पंच केदारों में इसका पांचवा नम्बर है। यह एक छोटा सा मंदिर पत्थर की गुफा में बना हुआ है, ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इस मंदिर में भगवान शिव की ‘जटा’ की पूजा की जाती है। इसलिए,भगवान शिव को जतधर या जतेश्वर भी कहा जाता है।
इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो अपने पाप से मुक्ति चाहते थे, और भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए पांडव भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी पहुंच गए। परन्तु भगवान शंकर वाराणसी से चले गए और गुप्तकाशी में आकर छुप गए, क्योंकि भगवान शंकर पांडवों द्वारा अपने कुल का नाश किए जाने से नाराज थे। जब पांडव गुप्तकाशी पंहुचे तो फिर भगवान शंकर केदारनाथ पहुँच गए जहां भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर रखा था।पांडवो ने भगवान शंकर को खोज कर उनसे आर्शीवाद प्राप्त किया था।ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमाहेश्वर में, भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन पांच स्थानों में कल्पेश्वर को पंचकेदार कहा जाता है। तो आप भी यदि उत्तराखण्ड की खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाने के साथ भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो कल्पेश्वर चले आइए।
इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो अपने पाप से मुक्ति चाहते थे, और भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए पांडव भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी पहुंच गए। परन्तु भगवान शंकर वाराणसी से चले गए और गुप्तकाशी में आकर छुप गए, क्योंकि भगवान शंकर पांडवों द्वारा अपने कुल का नाश किए जाने से नाराज थे। जब पांडव गुप्तकाशी पंहुचे तो फिर भगवान शंकर केदारनाथ पहुँच गए जहां भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर रखा था।पांडवो ने भगवान शंकर को खोज कर उनसे आर्शीवाद प्राप्त किया था।ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमाहेश्वर में, भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन पांच स्थानों में कल्पेश्वर को पंचकेदार कहा जाता है। तो आप भी यदि उत्तराखण्ड की खूबसूरत वादियों का लुफ्त उठाने के साथ भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो कल्पेश्वर चले आइए।