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4 साल की मेहनत लाई रंग, यहां वैज्ञानिकों ने झीलों की काई से तैयार किया जैविक ईंधन

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क्षेत्र की झीलों की काई से जैविक ईंधन पैदा करने में जैव प्रौद्योगिकी संस्थान भीमताल के वैज्ञानिकों ने सफलता पाई है। इस प्रक्रिया से जैविक ईंधन बनाने का दावा करने वाले वैज्ञानिकों ने बताया कि जल्द ही जैविक ईंधन की प्रमाणिकता के लिए इसे अमेरिका और दिल्ली के शोध संस्थानों में भेजा जाएगा।

काई से जैविक ईंधन बनाने में सफलता हासिल करने वाले वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले चार वर्ष से जैव प्रौद्योगिकी भीमताल की प्रयोगशाला में इस शोध में जुटे हुए थे। अब इसे पेटेंट कराने की तैयारी है।

इससे पूर्व राष्ट्रीय स्तर पर इसे प्रमाणिकता दिलाने के लिए जल्द ही दिल्ली एक टीम यहां से जाएगी। इस शोध में विभागाध्यक्ष डॉ. बीना पांडे, डॉ. तारा सिंह बिष्ट, डॉ. अमित पवार (शोध छात्र), ज्योति रावत (शोधछात्रा) शामिल रहे।

जैव प्रौद्योगिकी विभागाध्यक्ष डॉ. बीना पांडे ने बताया कि नैनीताल और भीमताल झीलों से 16 प्रजातियों की काई से जैविक ईंधन निकालने का शोध परीक्षण पिछले चार सालों से चल रहा था। इसमें झील से निकली 16 में से छह प्रजातियों की काई से जैविक ईंधन अधिक निकाला गया है।

काई से पैदा हो रहे जैविक ईंधन को वैकल्पिक रूप में वाहनों में डीजल के रूप में प्रयोग करने के लिए किया जा सकेगा। इससे ईंधन के मूल्य भी बेहद कम हो जाएंगे। डॉ. पांडे ने बताया कि झीलों की इन काई से 20 से 30 प्रतिशत जैविक ईंधन (तेल) प्राप्त किया गया है।

उद्योगपतियों ने भी सराहा  
डॉ. बीना पांडे बताती है कि ऊधमसिंह नगर के बहुत से उद्योगपतियों ने इस शोध कार्य को बड़ी उपलब्धि बताने के साथ पूर्ण सहयोग देने की बात कही है। रुद्रपुर में कृत्रिम झीलों में इन काई को पैदा करने की भी बात कहीं। डॉ. पांडे ने बताया कि इस काई से फैक्ट्रियों का अपशिष्ट पानी समेत धुएं को भी शुद्ध किया जा सकेगा।

जैव प्रौद्योगिकी परिषद कर रहा वित्त पोषित  
डॉ. बीना पांडे ने बताया कि इस शोध कार्य में उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद हल्दी पंतनगर की ओर से वित्त पोषित (फंड सुविधा) किया जा रह ाहै। पांडे ने बताया इस जैविक ईंधन को प्रामाणिता मिल गई तो इसका प्रयोग वाहनों में ईंधन के रूप में किया जा सकेगा और ईंधन के मूल्य भी बेहद कम हो जाएंगे।